tag:blogger.com,1999:blog-2465633509880130281.post1848437488297617647..comments2023-07-28T02:49:55.406-07:00Comments on मीडिया मंडी: टेलीविजन की रियलिटी तमाशा है- मार्क टलीविनीत कुमारhttp://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-2465633509880130281.post-43165995761634869772009-02-23T07:09:00.000-08:002009-02-23T07:09:00.000-08:00लोग रियलिटी देखना इसलिए पसंद करते हैं कि ड्रामा दे...लोग रियलिटी देखना इसलिए पसंद करते हैं कि ड्रामा देख-देख कर बोर हो गए हैं। पारिवारिक ड्रामों में कृत्रिमता इतनी अधिक होती है कि कहीं से भी दिल को छू नहीं पाते, न तो कथानक के स्तर पर, और न ही अभिनय, संवाद के स्तर पर। हर चैनल पर एक जैसे परिवार और उनकी कलह (उनके अवास्तविक मुद्दे) देखकर इरीटेट हो गए हैं। चलो रियलिटी के बहाने कुछ चेंज तो मिलेगा। टैलेंट हंट के लिए साक्षात्कार के दौरान असली एक्शन, रिएक्शन देखने को मिलता है। कम से कम साक्षात्कार में आए नए लड़के, लड़कियों की खुशी और दुख तो असली होते हैं। <BR/><BR/>यही हाल बिग बॉस का है। सेलीब्रिटी के लड़ाई-झगड़ों और गुटबंदियों को समूचे और असली रूप से देखने में दिलचस्पी होती है। उनकी मन: स्थिति का विश्लेषण करते हैं और उनकी भावनाओं/ सुख-दुख से स्वयं को रिलेट करते हैं। मुद्दा यही कि दिल को वही छुएगा जो असली या असलियत के करीब होगा। इस देखने और दिखाने की प्रक्रिया में बाज़ार भी अपना फ़ायदा उठा लेता है। आम आदमी टीवी तो देखेगा ही। अब टीवी उसकी आदत बन चुकी है। जो भी सामग्री उपलब्ध है, उन्हीं में से किसी को चुनकर अपना टाइम पास करेगा। मेरे विचार से टीवी से सरोकार सिर्फ मनोरंजन के लिए ही होता है, बशर्ते जब तक कोई विशेष घटना, जैसे 26/11 न हो।आनंदhttps://www.blogger.com/profile/08860991601743144950noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2465633509880130281.post-82400821344712767082009-02-22T09:49:00.000-08:002009-02-22T09:49:00.000-08:00हम सब लोग 'तात्कालिक चिन्तातुर लोग' हो गए हैं। प...हम सब लोग 'तात्कालिक चिन्तातुर लोग' हो गए हैं। परेशान सब हैं और निजात भी सब पाना चाहते हैं किन्तु चाहते हैं कि कोई और आकर निजात दिलाए। शुरुआत करने की बात छोड दीजिए, कोई ऐसी शुरुआत कर भी देता है तो उसके साथ चलने को तैयार नहीं होते।<BR/>हम सब 'वाणी-वीर' और 'कर्महीन' बन गए हैं। ऐसे में यह सब ऐसे ही चलता रहेगा-टीवी के रियलिटी शो भी, उन पर बहस भी और ऐसी बहसों पर ऐसा ब्लाग विमर्श भी। <BR/>आशा एक ही है। चूंकि हम एक 'पारम्पिरक समाज' हैं, इसलिए जब खतरा हमें लीलने लगेगा तब हम अवश्य सक्रिय और सचेष्ट हो जांगे। सच मानिएगा।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.com