tag:blogger.com,1999:blog-2465633509880130281.post5366597417675660007..comments2023-07-28T02:49:55.406-07:00Comments on मीडिया मंडी: राजनीति में टेलीविजन,सरोगेट पार्टी वर्कर हैविनीत कुमारhttp://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-2465633509880130281.post-57598018901907455542009-05-01T21:49:00.000-07:002009-05-01T21:49:00.000-07:00मीडिया की बनाई छवियों के हिसाब से हमारा वोटर वोट द...मीडिया की बनाई छवियों के हिसाब से हमारा वोटर वोट देता है.... भाई, ये विचार कमाई का ज़रिया बनाए रखने के लिए तो ठीक हो सकता है पर ये बात वास्तव में ही सही होती तो,<br /><br />1---मीडिया द्बारा, 15 साल तक लालू को मसखरे की तरह दिखने के बाद भी लोग जिताते न रहते. और आज लालू को सफलतम रेल मंत्री बताने के बावजूद, हार से डरे लालू 2-2 जगह से चुनाव न लड़ रहे होते.<br />2---अगर मीडिया इतना ही प्रभावी होता तो 2004 में "इंडिया शाइनिंग" के बावजूद बीजेपी हारती नहीं.<br />3---1977 में, आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी हारती नहीं.<br />4---अगर ऐसा होता तो शीला दीक्षित तीसरी बार चुनाव नहीं जीतती.<br />5---दिल्ली में एक कालोनी है, द्वारका. इसके लोंगों को पता तक नहीं की 5 दिन बाद होने वाली वोटिंग में किस पार्टी का कौन उम्मीदवार खडा है. द्वारका,100% शिक्षित बहुत बड़ी कालोनी है जिसमें, मध्यवर्ग और उच्च- मध्यवर्ग परिवार रहते हैं, लिहाजा सभी मीडिया देख-पढ़-सुन-समझ सकते हैं. लेकिन इसके बावजूद, कोई प्रत्याशी पाई खर्च कर के ये बताने तक को भी तैयार नहीं की वोह चुनाव लड़ रहा है..क्योंकि उसे पता है की क्या फायदा...लोग अपनी मर्ज़ी से ही वोट देंगे.<br /><br />सच तो ये है कि, लोगों को पता है कि उन्हें क्या करना है. इस बीच, अमीरों की कठपुतली बेचारे मीडिया के आदर्शवादी गरीब पत्रकार यूं ही गाल बजाते घूमते रहते हैं, इस मुगालते में कि देश का लोकतंत्र उन्हीं ने चला रखा है.Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.com