अबकी बार स्टार न्यूज ने जब अपने दिल्ली ऑफिस कैंपस में ही रावण दहन किया और पेड पंडित ने जब इसे राष्ट्र निर्माण का हिस्सा बताया तो मेरे मन में अचानक से सवाल उठा- क्या कभी ऐसा समय आएगा कि स्टार न्यूज बाहर से,पैसे से खरीदकर रावण लाकर जलाने के बजाय,चैनल के भीतर के रावणों को हमारे सामने करे। हमसे पूछे कि बताइए कि अब जब हमने अपने चैनल के भीतर रावण दहन शुरु कर दिया है लेकिन अपने ही चैनल के भीतर कुछ रावण मौजूद हैं तो उसका क्या करें? पेड पंडित के हिसाब से, टीआरपी की जुबान बकनेवाले पंडित के हिसाब से अगर सोचें तो अगर स्टार न्यूज अपने चैनल के भीतर के रावणों का दहन कर पाता है तो यकीन मानिए कि इससे बड़ा राष्ट्र निर्माण शायद ही कभी हो सकेगा। ये अलग बात है कि राष्ट्र शब्द अपने आप में एक भटकानेवाली अवधारणा है जिसकी एक गली अंधराष्ट्रवाद,पाखंड और आगे चलकर कट्टरता में खुलती है जिसका परिचय भी खुद स्टार न्यूज नें आज दिया। फिर भी, अगर स्टार न्यूज रावण दहन को लेकर सीरियस है तो उसे इस बात की पहल तो जरुर करनी चाहिए कि वो अपने भीतर पल रहे उन रावणों की साइज छोटी करे जिनका कद घटने के बजाय और बढ़ता चला जा रहा है। बल्कि हम ये कहें कि सिर्फ स्टार न्यूज ही क्यों,चैनल इन्डस्ट्री में ऐसे कई रावण हैं,जिनके हर साल के दहन के बीच उनका कद और अधिक पहले से बड़ा,खतरनाक और समाज को तहस-नहस करनेवाला होता जाता है।
स्टार न्यूज ने जब अपनी ऑफिस में ही रावण दहन का कॉन्सेप्ट बनाया तो जाहिर है कि उसके दिमाग में सिर्फ औऱ सिर्फ बाकी दूसरे चैनलों को पटकनी देते हुए आगे निकलने की रही। लेकिन ऐसा सोचते हुए चैनल के दिमागदार लोग ये भूल जाते हैं कि घर में टेलीविजन के आगे अपने को झोंक चुकी ऑडिएंस इस बात को इस रुप में नहीं लेती। कोई भी ऑडिएंस हवा में चीजों और टेलीविजन को नहीं लेती। वो उसे एक कॉन्टेक्स्ट के साथ जोड़कर देखती है। मैंने भी यही किया। जब मैंने इस ड्रामे को देखना शुरु किया तो सोचने लगा कि क्या ऐसा करते हुए चैनल के आकाओं को कभी इस बात पर ध्यान गया होगा कि इसी चैनल में सायमा सहर के साथ कुछ दबंग( दीपक चौरसिया वाला दबंग नहीं जो बिहार में दबंग मुख्यमंत्री चुनने की सलाह दिए फिर रहे हैं) और मनचले चैनलकर्मियों ने क्या किया? अविनाश पांडे और गौतम शर्मा ने किस हद तक सायमा सहर को परेशान किया, किस तरह उनपर लगातार प्रेशर क्रिएट किया औऱ जब मामला बढ़ता गया,तब वीमेन कमीशन तक जाकर चैनल के सो कॉल्ड समझदार मीडियाकर्मियों ने सबकुछ मैनेज करने की कोशिश की,ये सब अब सार्वजनिक है। इसकी खबर एनबीटी और दि टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी ली है। क्या एक ऑडिएंस की निगाह में ये सारे लोग रावण नहीं हैं और दहन करते वक्त इनकी तस्वीर दिमाग में नहीं आती?
उम्मीद है कि बॉस लोग उस अक्लमंद प्रोड्यूसर की पीठ ठोक रहे होंगे और वो भी खुद फैल रहा होगा जिसने पिछली रात "लक्ष्मण का रावण वध" स्टोरी बनायी। मिथकों में जाएं तो राम ने रावण का वध किया था,लक्ष्मण ने नहीं। लेकिन चूंकि इस देश में सबसे ज्यादा दिमाग चैनल में काम कर रहे लोगों के पास हैं क्योंकि उनके पास करोड़ों रुपये की छतरी है इसलिए वो जो करें,सब सही है। चैनल ने लक्ष्मण बनाया क्रिकेट के वी वी एस लक्ष्मण को और रावण माना अस्ट्रेलिया को और उतार दिया एक झटके में क्रिकेट की पटरी पर। सारे के सारे फुटेज क्रिकेट के और वी वी एस लक्ष्मण की क्रिकेट गाथा। एक सीधा सवाल कि जिस अस्ट्रेलिया से भारत के संबंध सुधारने की लगातार कोशिशें जारी है, फॉरेन अफेयर्स दिन-रात जिसके पीछे लगा है,उसे आप रावण करार देते हैं और वो भी भारतीय छात्रों की हत्या करने के बजाय से नहीं बल्कि क्रिकेट में वी वी एस लक्ष्मण के प्रयास से हराने की वजह से। ऐसा लगातार दिखाकर चैनल या तो ये समझता है कि उससे ज्यादा देशभक्ति किसी और में नहीं या फिर ये मानकर चलता है कि अस्ट्रेलिया के लोगों को हिन्दी नहीं आती,चाहे जो दिखाओ। उसकी इस समझ के आगे कोई क्या कहे? लेकिन, चैनल की ऐसी ही स्टोरी से अगर अस्ट्रेलिया के लोगों के बीच नफरत पनपती है,संबंध बनने के बजाय और बदतर होते हैं तो फिर ये चैनल के अक्लमंद, देशभक्त प्रोड्यूसर उनके और उनके परिवारवालों के लिए मर्यादापुरुषोत्तम राम होगें या फिर असली रावण करार दिए जाएंगे,इस फैसले को लेकर कोई विकल्प नहीं बचता। रावण कुछ किलो के बारुदी पटाखों का नाम नहीं है,वो समाज के उस खौफनाक इरादों का नाम है जिसका होना ही समाज को मौत के उपर टिके होने जैसा है। क्या चैनल तैयार है,अपने भीतर के इस रावण के दहन के लिए?
2 अक्टूबर को दीपक चौरसिया ने बाइक पर लहराते हुए जॉन इब्राहिम के साथ बिना हेलमेट पहने इंटरव्यू लिया।..नीचे पट्टी आयी कि चैनल ने ऐसा करने की इजाजत ले रखी है। गौतमबुद्धनगर पुलिस स्टेशन ने हमारी शंका का समाधान करते हुए ये कहा भी कि हां ऐसी अनुमति मिल जाती है। लेकिन साथ में मेरी इस बात पर सहमति भी जतायी कि कल अगर बाकी के चैनल भी ऐसी ही अनुमति मांगने लगेंगे तो क्या स्थिति बनेगी? बात करनेवाले अधिकारी का कहना है- बात तो आपने बहुत सही पकड़ी है। क्या बाइक विपासा से सुंदर है का जबाब जानने के लिए देश का सो कॉल्ड सबसे सक्रिय टीवी पत्रकार के भीतर अगर ये बदमाशी घुस आती है और सैंकड़ों लोगों की जान खतरे में पड़ सकती है,जिस सड़क पर परसों ही एक बच्चे की मौत हो गयी, आप उस पत्रकार के भीतर के रावण का दहन कैसे करेंगे? इतना ही नहीं,इसके बाद भी जैसा कि कुछ पत्रकार साथियों ने फोन करके बताया कि दीपक चौरसिया बिहार में कर रहे अपने स्पेशल शो-कौन बनेगा मुख्यमंत्री में भी कुछ लोगों के साथ बाइक पर लहराते नजर आए।( मैंने इस शो के इस हिस्से को देखा नहीं इसलिए यकीन के साथ नहीं कह सकता) क्या चैनल को उस रावणी मानसिकता की पहचान है?
13 अगस्त 2010 को गुजरात के मेहसाना में एक शख्स आग लगाकर आत्महत्या कर लेता है जिसके पीछे एक मीडिया संस्थान के दो पत्रकारों पर आरोप है कि उसने उसे इस काम के लिए उकसाया। इस बाबत ठीक दस दिन बाद यानी 27 अगस्त को दिल्ली में ब्रॉडकास्ट एडीटर्स एशोसिएशन की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट आ जाती है। कुल दस पन्ने की रिपोर्ट में जो कि एक ही तरफ छपाई है, 4 पन्ने कवर,कंटेंट और सिग्नेचर के पन्ने हैं। सिर्फ 6 पन्ने पर केस स्टडी है,उसमें सारी बातें समेट दी जाती है और टीवी-9 के जो एक्यूज्ड पत्रकार है कमलेश रावल,उनसे फोन पर बात करने की अपार्चुनिटी का जिक्र भर है। इसी तरह की कुछ सतही बातें और फाइंडिंग्स हैं जिन्हें पढ़ते ही अंदाजा लग जाता है कि ये खानापूर्ति से ज्यादा कुछ भी नहीं है। इस रिपोर्ट के बाद हमें मेहसाना में आत्महत्या करनेवाले शख्स के बारे में मीडिया की तरफ से कोई जानकारी नहीं है। अगर ये मामला कोर्ट,पुलिस के अधीन है तो इसकी फॉलोअप स्टोरी हमें कहीं दिखाई नहीं दी। इस मामले को स्टार न्यूज के रावण के तहत देखना इसलिए जरुरी लगा क्योंकि जिस ब्रॉडकास्ट एडीटर्स एशोसिएशन ने रिपोर्ट जारी की है, उसके अध्यक्ष स्टार न्यूज चैनल हेड के शाजी जमां है। उनकी नाक के नीचे अगर चैनल में जर्नलिज्म के अलावे बाकी सबकुछ हो रहा है,चलताउ तरीके से किसी की आत्महत्या की रिपोर्ट पेश की जा रही है और वही चैनल अगर मौज में आकर ऑफिस में रावण दहन कर रहा है तो ये पाखंड से कहीं ज्यादा घिनौनी हरकत नहीं तो और क्या है?
दशहरे के मौके पर लगभग सारे चैनल अपने-अपने तरीके से रावण की ब्रांड वैल्यू बेचने में लगे थे। खुद स्टार न्यूज 51 रावण का दहन दिखा रहा था तो न्यूज 24 अलग-अलग फील्ड और कुकर्मों के रावण की खोज कर रहा था। ऐसे ही वक्त दिमाग में आया कि क्या न्यूज चैनलों में रावण नहीं हैं और अगर हैं तो उसकी साइज दिनदुनी रात चौंगुनी बढ़ती ही क्यों चली जा रही है? क्या इस रावण पर अंकुश लगाना समाज की सबसे बड़ी चुनौती है या फिर समाज अभी इस लायक हुआ ही नहीं है कि वो इस पर लगाम कस सके। इसलिए जिस तरह चैनल ने अपने-अपने तरीके से रावण खोजे,सच बात तो ये है कि चैनल के भीतर उनके अपने-अपने रावण है। कहीं कोई रावण सैंकड़ों पत्रकारों का करियर लील जा रह रहा है तो कहीं कोई चैनल को आजाद नाम देकर उसके पत्रकारों को लाइन में लगाकार सैलरी बांटता है।..जरुरत है कि चैनलों पर रावण देखने के बजाय,चैनलों के रावण की शिनाख्त करें,सरेआम उन्हें हतोत्साहित करे। बेहतरा दशहरा यही होगा।
फिलहाल मैंने स्टार न्यूज के भीतर जो रावण पल रहें हैं,किसी शख्स से ज्यादा वो मानसिकता है,उस पर लिखा है। आप सब पहल करेंगे तो बाकी चैनलों के भी रावण हमारे सामने बेनकाब हो सकेंगे। कोशिश कीजिए, अच्छा रहेगा।
आपसे प्रेरित पोस्ट देखिये यहां :- http://teeveeplus.blogspot.com/2010/10/blog-post_2360.html
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