Monday 16 April 2012

ये किस घटिया खेल में शामिल हैं मोहल्लालाइव के अविनाश ?

सुबह उठकर जब मैंने वेबसाइट खंगालने शुरु किए तो देखा जनसत्ता के जिस लेख "पेड न्यूज के पिछवाडे" की पीडीएफ मोहल्लालाइव को भेजी थी,वो लेख भड़ास4मीडिया पर छपा है. उस लेख में इस बात का कहीं जिक्र नहीं था कि ये पहले जनसत्ता में छप चुका है. लिहाजा सबसे पहले मैंने भड़ास4मीडिया के कमेंट बॉक्स में लिखा- सर,ये लेख कल जनसत्ता में छप चुका है और इस बात का जिक्र किया जाना जरुरी है. थोड़ी देर बाद वेबसाइट ने इसे शामिल कर लिया.

जीमेल इन्बॉक्स देखा तो उसमें अविनाश के मेल थे. लिखा था- चूंकि यह अभियान भड़ास ने चलाया है,वहां ये छपे तो ज्यादा सही रहेगा. रात में ब्रॉडबैंड न चलने की स्थिति में मैंने ये मेल सरसरी तौर पर मोबाईल से देखा था लेकिन लैपटॉप से पूरा खोलकर देखने पर पता चला कि यूनीकोड में कन्वर्ट करने के बाद अविनाश ने वो लेख भड़ास4मीडिया के मॉडरेटर यशवंत सिंह को भेजा है. मुझे अटपटा लगा और साथ में बेतुका भी. जब मैंने लेख मोहल्लालाइव के लिए भेजा था तो उसे भड़ास4मीडिया को भेजने की क्या जरुरत थी ? अगर अविनाश को ये लेख मोहल्लालाइव पर नहीं छापनी थी तो उसे इग्नोर करने या फिर मना करने के कई बहाने हो सकते थे. ये मॉडरेटर का अपना विवेक और निर्णय है कि वो अपनी वेबसाइट पर क्या छापे,क्या नहीं. जैसा कि वो पहले से करते आए हैं. नहीं छापने की स्थिति में मेरे सहित दूसरे लोगों को भी वजह बताई है कि चूंकि ये लेख पहले कहीं छप चुका है, हम इसे मोहल्लालाइव पर नहीं छाप सकते. ये अलग बात है कि कई ऐसे लेख जो उन्हें जरुरी लगा,वर्चुअल स्पेस की कब्र से खोदकर निकालकर छापते रहे हैं. खैर,

मोहल्लालाइव या किसी भी दूसरी वेबसाइट के लिए भेजा गया लेख वहां न छपने की स्थिति में कहां छपेगा,ये तय करने का अधिकार उस वेबसाइट के मॉडरेटर को है या फिर खुद लेखक को,ये अविनाश जैसे सधे मॉडरेटर से बेहतर भला कौन बता सकता है ? उन्होंने किस समझदारी से ये लेख भड़ास4मीडिया को भेज दिया,ये अभी तक मेरी समझ के बाहर है. अगर उनके तर्क के हिसाब से भी समझने की कोशिश करें कि इस लेख में भड़ास4मीडिया का जिक्र है तो वहां छपनी चाहिए. इसमें सीधा सा सवाल है कि लेख में मीडिया दरबार डॉट कॉम का भी तो जिक्र था, फिर उसे क्यों नहीं भेजा. जब इस लेख के जरिए प्रचार-प्रसार( उनसे लिया उधार के शब्द) ही करना था तो ये मौका मीडिया दरबार को क्यों न दिया गया ? अविनाश ऐसा करके आखिर साबित क्या करना चाहते हैं ? कहीं भड़ास4मीडिया के मॉडरेटर को ये एहसास कराना तो नहीं कि विनीत कुमार की इच्छा थी कि ये लेख इस वेबसाइट पर छपे और चूंकि पिछले चार सालों से मॉडरेटर यशवंत सिंह से सीधे बात नहीं की है तो अविनाश दास के जरिए लेख छपवाने की कोशिश की ? अविनाश को क्या ऐसा करने का हक है कि वो इस तरह की अटकलें और आकलन लगाने की छूट उस वेबसाइट को दे जहां पिछले चार सालों से लेखक की कोई भी पोस्ट नहीं छपी है.

ये वही अविनाश हैं जिन्होंने आज से चार साल पहले मोहल्ला( तब वो ब्लॉग भर था) पर मेरी पोस्ट ये कहते हुए छापने से मना कर दिया था कि जो भड़ास पर छपता है,हम उसे यहां नहीं छापते. आज आखिर ऐसा क्या हो गया कि चार साल से जो लेखक सिर्फ मोहल्ला औऱ मोहल्लालाइव के लिए लिखता आया है, उसका लेख भड़ास4मीडिया को यूनिकोड में कन्वर्ट करके भेजा गया ? ये बात भड़ास4मीडिया पर छपे लेख और किए गए परिवर्तन पर ध्यान देने पर आसानी से समझ आ जाता है.

दरअसल लेख में मैंने लिखा था कि सबसे पहले स्टार न्यूज ने निर्मल बाबा के विरोध में स्टोरी चलायी जबकि अविनाश को इस बात से असहमति थी. उनके अनुसार न्यूज एक्सप्रेस ये काम पहले से करता आया है. न्यूज एक्सप्रेस के कुछ प्रोग्राम कार्टून की शक्ल में हमने पहले भी देखे थे. उड़ती-उड़ती ये भी खबर आयी कि चूंकि न्यूज एक्सप्रेस को निर्मल बाबा ने विज्ञापन देने लायक नहीं समझा तो आखिर में चैनल के मुखिया मुकेश कुमार झंड़े लेकर खड़े हो गए. थर्ड आइ ऑफ निर्मल बाबा पिछले ढाई-तीन महीने से आ रहा है, जाहिर है मुकेश कुमार इस कार्यक्रम से गुजरे होंगे.लेकिन ये चैनल हर खबर के पीछे पॉलिटिकल एंगिल खोजता है,समाज और अंधविश्वास का एंगिल बहुत बाद में आता है,लिहाजा इस पर कोई स्टोरी करना जरुरी नहीं समझा. बाद में विज्ञापन न मिलने और निर्मल बाबा का नाम सांसद इंदर सिंह नामधारी से जुड़ने के कारण स्टोरी करनी शुरु कर दी. न्यूज एक्सप्रेस और मुकेश कुमार को इस बात की पीड़ा लगातार बनी रही कि स्टोरी सबसे पहले उन्होंने की लेकिन उन्हें कोई क्रेडिट क्यों नहीं दे रहा ? शायद इसलिए भड़ास4मीडिया ने जब जनसत्ता में मेरा लेख छापा तो उसमें इस चैनल का नाम जोड़ दिया. साथ में ये स्पष्टीकरण देना भी जरुरी नहीं समझा कि इस लेख में वेबसाइट की तरफ से कुछ फेरबदल किए गए हैं. अगर मैंने लेख में गलत जानकारी दी थी तो इसका सबसे बेहतर तरीका था कि वेबसाइट अपनी तरफ से इसे लिखता,मेरे लिखे को खारिज करता,जनसत्ता को पत्र लिखकर शिकायत करता लेकिन नहीं. उसने अपने तरीके से मूल लेख को एडिट करके छापा. बहरहाल

भड़ास4मीडिया ने ऐसा क्यों किया, इस वेबसाइट को लगातार विजिट करनेवाले लोगों के लिए समझना आसान नहीं है. न्यूज एक्सप्रेस का विज्ञापन औऱ मुकेश कुमार की प्रशस्ति पहले लगातार आते रहे हैं और शायद आगे भी आएं. इस लेख में अलग से चैनल का नाम जोड़कर वेबसाइट ने अपने तरीके से ठीक ही किया. लेकिन ये सब करने से मोहल्लालाइव और अविनाश को क्या लाभ मिला, इसे समझने में मुझे थोड़ा सा वक्त लगा.

दुनिया की नजर में अविनाश दास और यशवंत सिंह दो अलग-अलग टापू पर बैठे मॉडरेटर हैं जहां से गुजरनेवाली हवा को एक-दूसरे से छूकर गुजरने की भी मनाही है. लेकिन मेल के जरिए यूनीकोड मटीरिअल का भेजा जाना साबित करता है कि अविनाश दास की उदारता कुछ दूसरी ही गली में जाकर खुलती है. जाहिर है ये अविनाश का बडप्पन नहीं बल्कि एक तरह की खीज और बाद में उसे पीआरगिरी की शक्ल में बदलने की कोशिश से ज्यादा नहीं थी. ये बात तब और स्पष्ट हो गई जब

फेसबुक पर शशिभूषण एक पीस लिखी और उसमें निर्मल बाबा के पर्दाफाश के लिए असली हकदार मोहल्लालाइव और हंस को दिया. मोहल्लालाइव को इसलिए कि उसने सबसे पहले निर्मल बाबा के सच को सामने लाने की कोशिश की थी. उसने अमेरिकी वेबसाइट पर छपी सामग्री का उल्था पेश किया था और हिन्दी समाज के बीच गर्माहट पैदा करने की कोशिश थी. हंस को क्रेडिट इसलिए दिया जाना चाहिए था क्योंकि सबसे पहले मुकेश कुमार ने वहां लेख लिखकर पर्दाफाश किया था. जाहिर है शशिभूषण ने मेरी जानकारी ही बढ़ाई थी लेकिन साथ में ये भी जतला दिया था कि उनका उद्देश्य निर्मल बाबा के विरोध के प्रसंग को क्रम से देखना नहीं था बल्कि मुकेश कुमार और मोहल्लालाइव का जो हक मारा जा रहा था, उसे जाहिर करना था. अगर ऐसा नहीं होता तो वे मार्च में छपे तहलका के उस लेख का भी जिक्र करते जिसका शीर्षक था- ये देश संसद से नहीं,निर्मल बाबा से चलता है..

अविनाश ने शशिभूषण की इस एफबी पोस्ट के नीचे कमेंट में सिर्फ विनीत कुमार लिखा जिसका मतलब था- विनीत कुमार,आप कहां सोए पड़े हैं,ये देखिए निर्मल बाबा के पर्दाफाश का असली सच. इसी क्रम में बात मुकेश कुमार तक आ गयी और एक सज्जन ने उनमें खास दिलचस्पी इसलिए दिखाई क्योंकि वो मुकेश कुमार के बारे में कुछ और ही जानते थे और उन्हीं के इलाके के थे. अविनाश ने तपाक से लिखा था- हां ये वही मुकेश कुमार हैं जिन्होंने सहारा में रहकर सहारा प्रणाम करने से मना कर दिया था. एक-दो और ऐसे कमेंट जिसमें हमें सलाह दी गई कि अगर हमने मुकेश कुमार के चैनल न्यूज एक्सप्रेस को देखा होता तो शायद उनके बारे में ऐसी निगेटिव राय नहीं रखते. हालांकि शशिभूषण की एफबी वॉल पर से मुकेश कुमार से जुड़ी सारी टिप्पणियां हटा दी गई हैं. मुकेश कुमार ने मौर्या टीवी में रहकर क्या किया है औऱ कैसे चैनल को नंबर वन बनाया है,ये अलग से बताने की जरुरत नहीं है. इस पर तहलका ने कवर स्टोरी ही की है. स्टोरी में स्पष्ट किया है कि केबल के साथ चैनल ने ऐसी सेटिंग की कि कुछ घंटे के लिए पटना में सिर्फ मौर्या टीवी ही आया और चैनल रातोंरात नंबर वन हो गया. बाद में इसकी क्या हालत हुई, कैसे बेतहाशा छंटनी का दौर शुरु हुआ,ये सब इंटरनेट पर मौजूद है.

इस तरह कहानी यहां आकर पहुंचती है कि भड़ास4मीडिया ने  मेरे लेख में न्यूज एक्सप्रेस का नाम जोड़कर संशोधन/ नमक का हक अदा किया तो अविनाश हमें कौन सा सच समझा रहे थे ? अविनाश और यशवंत में परस्पर विरोध होने जो कि जब-तब वर्चुअल स्पेस में जाहिर होता रहा है के वाबजूद एक धागा है जो इस पूरे धत्तकर्म से जुड़ती है और वो हैं मुकेश कुमार. मुकेश कुमार ने तो भड़ास4मीडिया को विज्ञापन देकर यशवंत सिंह को अपना मुरीद बना लिया लेकिन अविनाश को सहारा प्रणाम का विरोध याद रह गया और मौर्या टीवी का गंदा खेल नहीं, ये कैसे भूल गए ? क्या जो विज्ञापन नहीं दिखता है, उसके भी अपने लाभ होते हैं ?

वर्चुअल स्पेस पर क्रेडिट लेने की मारकाट उसी तरह से जारी है जिस तरह से स्टार न्यूज की स्ट्रैटजी से मार खाया हुआ इंडिया टीवी भी घसीट-घसीटकर एक्सक्लूसिव कहलाए जाने की बेचैनी से भोकार रहा है.

9 comments:

  1. पूरी पोस्ट पढ़ने के बाद लगा कि जो जहाँ है, जैसे है, परेशान ही है....चाहे बड़े से बड़े पोजिशन पर ही क्यों न हो....उसी में ऊभ-चूभ रहा है......बुड़-उतर रहा है :)

    कहीं मुकेश कुमार ने इस्टाईल से प्रणाम नहीं किया था तो युवा तुर्क प्रतीक बन गये....कहीं उनकी उनसे पुरानी अदावत है.....तो कहीं कुछ।

    ऐ छुट्टन ...... गाना लगाओ- अनारकली और डिस्को वाला.......यह सब तो चलता ही रहेगा ।

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  2. जय हो! कितने पेचोखम हैं इस साइटगीरी में। लेकिन यह ताज्जुब की बात है कि मोहल्लालाइव के माडरेडर को पहचानने में उनसे जुड़े लोगों को इतनी देर लगती है। :)

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  3. मैं अपनी स्थिति स्‍पष्‍ट करना चाहता हूं। मैंने भड़ास4मीडिया को विनीत का लेख छापने के लिए नहीं दिया था, बल्कि विनीत को उनका लेख लौटाते हुए चूंकि भड़ास4मीडिया का जिक्र किया था, इसलिए उसके संपादक और सीईओ यशवंत का आईडी भी सीसी में एड कर दिया था। बेशक यह लेखक का अधिकार है कि वो अपनी चीज जहां चाहे, छपवाये। सुबह यशवंत ने विनीत का लेख छाप कर मुझे मेल किया, तो मैंने उसे विनीत को फारवार्ड कर दिया। इसमें विनीत कुमार को कौन सा खेल नजर आ रहा है, मुझे नहीं मालूम। लेकिन मामूली बातों को सनसनी की पन्‍नी में लपेट कर पेश करना अटपटा जरूर लग रहा है। मैंने कभी सार्वजनिक रूप से विनीत पर इस तरह का कोई हमला नहीं किया है, लेकिन अगर उन्‍हें लगता है कि उनके द्वारा किये गये हमले से उनके चित्त को शांति मिलेगी, तो यही सही। मैं विश्‍वास दिलाना चाहता हूं कि मैं कोई पलटवार न अभी करूंगा, न ही भविष्‍य में करूंगा।

    ***

    एक और गलतबयानी से आपको बचना चाहिए विनीत। आप अपने लेख को यूनिकोड में कनवर्ट करने के लिए सुबह से मुझको कई बार कह चुके थे। शाम को मैंने लेख आपसे मंगवाया और कनवर्ट करने के बाद उसका प्रूफ पढ़ने लगा। पढ़ते हुए भड़ास का जिक्र देखा और तभी आपको एक पत्र लिख कर उसे वापस किया था। इस मसले पर इतना वितंडा आपने खड़ा कर दिया है, हैरानी हो रही है।

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  4. I have a question. So, if an article is already published in Jansatta and someone clips the article outs and scans it and posts it on the website, would it be a similar situation. However, this situation is little tricky.

    Neeraj

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  5. I don't understand what is going on. I know very well Mr. Avinash. I understand he is the man who can do that kind of silly thing just for nothing. Rubbish...

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  6. Avinash is a broker and these days he is just doing PR work for various people like Mukesh Kumar to Chandra prakash Dwivedi.......long list. Then what u expect from Avinash. He doesn't have any ethical or moral value. He crticise various people. Now what is he doing. These days he is doing absolute PR work. Guys have you remeber Mr. Ajit Rai. This man has posted various article against him and try to spoil his career. Now Avinash is working in Ajit Rai manner or may be in more worst way. And now he is trying to justify their work. Vineet you are wasting your time to invest your time in such kind of stupid person . He will never be changed. Maintain a distance otherwise he will destroy your image and career too. Beware of Dog....

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  7. अविनाश
    आप मुझे सिर्फ एक बात बताइए, क्या मैं पिछले चार सालों से भड़ास4मीडिया में छपा हूं कभी जो आपने ये कहते हुए सीसी कर दिया भड़ास को कि इसे वहां छापना सही होगा. मैंने मीडियादरबार का भी जिक्र किया था,आपने उसे तो सीसी नहीं किया. कायदे से तो उसे भी करना चाह रहा था..आप इतने अंजान क्यों बन गए अविनाश. आपको नहीं पता था कि मैं भड़ास में नहीं छपता. मुझे कन्वर्ट नहीं करना आया तो मदद मांगी थी, मोहल्लालाइव का रेगुलर राइटर हूं तो अपील की थी कि इसे आप लगाएं. आपको नहीं लगाना था तो इतना झोल पैदा करने की क्या जरुरत थी.
    विनीत

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  8. मेरे पास भड़ास 4 मीडिया के मॉडरेटर की मेल आईडी थी, लिहाजा उसे मेल किया। मीडिया दरबार का होता, तो उसे भी करता। हालांकि मैं नहीं जानता कि मीडिया दरबार किसका है, कौन चलाता है। और पिछले कई महीनों से आप मोहल्‍ला पर वाया जनसत्ता आते रहे हैं। कई बार मैंने आपको कुछ लिखने के लिए कहा तो आपने कहा कि वक्‍त नहीं है - लेकिन मैंने देखा कि जनसत्ता में लिखने के लिए आपको आसानी से वक्‍त मिल जाता रहा है। और फिर आप उसे मोहल्‍ला पर लगाने के लिए कहते रहे हैं। आपने मोहल्‍ला को वाया प्रिंट मीडिया बनाने की शुरुआत की, इसलिए अब कृपया ये मत कहिए कि मैं मोहल्‍लालाइव का रेगुलर राइटर हूं।

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  9. अविनाश,हालांकि इस बहस में अब कोई मतलब नहीं रह गया है. बहुत दिनों बाद ये कमेंट देखा तो लगा एक-दो बातें फिर भी कह दूं. पहली बात तो ये कि आपने जनसत्ता का कौन सा लेख मोहल्ला पर लगाया है, प्लीज उसे बताएं. आपने बहुत पहले ही कहा था हम छपी हुई चीज नहीं लगाते तो मैंने कभी कहा नहीं. ये पहला लेख था जिसे कि मैंने कहा कि अगर आप चाहें तो मोहल्ला पर लगाएं या कैसे कनवर्ट करते हैं,मुझे थोड़ा बता दें या कर दें. दूसरी बात कि मैंने कभी ऐसा नहीं कहा कि मेरे पास समय नहीं है. हां ये जरुर है कि किताबों में उलझा रहने के कारण मैं पोस्ट नहीं लिख पाता था. आपने मोहल्ला पर मेरे प्रिंट में छपे शायद ही कोई लेख छापे होंगे. और इस लेख से पहले मैं कभी ऐसा कहा भी आपको..

    आपको मेरा जनसत्ता में लिखना खलता है,ये बात मैं बहुत पहले से महसूस करता आया था. लेकिन आपको मेरा जनसत्ता में छपना याद है और बहसतलब में जब सब लोग पूरी रात चक्कलस करते रहते और मैं तीन-तीन बजे रात तक जाकर पांच-पांच हजार शब्दों की रिपोर्ट लिख रहा होता, वो याद नहीं रहा. ये सिर्फ अफसोस करने की चीज है. ये गिनाने की बात नहीं बल्कि मोहल्लालाइव पर जाकर बस विनीत कुमार जाकर टाइप करने की है. मैंने जनसत्ता में जब लिखना शुरु कर दिया जबकि आपने कई बार मेरी पोस्ट न छापकर कुछ और मसलों पर पोस्टें लगाने लगे औऱ सिनेमा की पोस्टें आपकी प्रमुखता में आ गयी. आपने खुद ही कहा कि अब हम साहित्य और मीडिया के मसले पर ज्यादा दखल नहीं देंगे. मैं ज्यादातक मीडिया पर ही लिखता आया था और आपने कह दिया था कि इन पर हमें ध्यान नहीं देना है. ऐसे में मैं क्या करता ? हां ये जरुर है कि इन दिनों पहले जैसा कार्यक्रम से आकर रिपोर्ट लिखने का उत्साह कई बार नहीं रहता था. आप इन सारी चीजों को इस रुप में लेंगे, इसकी उम्मीद न थी.
    आपको लगता है कि मैंने मोहल्ला को प्रिंट में जाने के लिए एक मंच की तरह इस्तेमाल किया तो मैं क्या कहूं लेकिन हां मैं इससे पहले लगातार ज्ञानोदय में, तहलका में,कभी-कभार जागरण में छपता रहा था लेकिन मोहल्ला के लिए लगातार लिखता रहा था. किताब पूरी होने के बाद मैंने आपसे कहा भी था कि अब सबकुछ पहले की तरह ही रेगुलर हो जाएगा. मुझे लगा,आप मेरी स्थिति समझ रहे हैं लेकिन इसे आप इस अर्थ में लेंगे, इसका अंदाजा नहीं था.

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