Wednesday 11 March 2009

टेलीविजन की होली,रिपोर्टर ने कहा- जरा सटिए न


क्या गुरु, तुम तो कहते हो कि बीएचयू (बनारस) में हमलोग लेडिस लोग से बोलने-बतियाने के लिए तरस जाते थे और यहां देख रहे हैं कि न्यूज 24 पर मार लौंडे लोगों के साथ लेडिस लोग झूम रही है। मेरे फोन करते ही वो हड़बड़ा गया- अरे, ऐसे कैसे हो सकता है, हमरे टाइम में तो ऐसा नहीं हुआ। अभी पता करते हैं, अगर ऐसा है तो भाड़ में जाए मई का अश्वमेघ यज्ञ( यूपीएसी पीटी), वहीं जाकर पीएचडी में इनरॉल होते हैं। दो साल तो नेट के नाम पर ही डोरा डालनेवाला काम होगा। करीब दस मिनट बाद फोन आया- अरे भाई, उ सब म्यूजिक और फाइन आर्ट के लौंडे थे, अब उनकी बात कौन करे, उऩलोगों के बीच ऐसा कुछ नहीं होता है. वो तो तालिबानी शासन में भी लेडिस लोग के साथ नाचे तो कोई कुछ नहीं कहेगा। मैंने कहा- लेकिन गुरु नैचुरल नहीं लग रहा था, लग रहा था कि संकोच से गड़े जा रहे हैं दोनो। उसने फिर कहा- तब हिन्दीवाला लोग मिला हुआ होगा, उस टोली में। वही लोग विद्यापति पढ़कर अजमाना भी चाहता है और समाज से डरता भी है। मैंने जोड़ते हुए कहा- अगर घर में कोई पूछे भी तो कह देगी,कैमरेवाले भइया ने कहा था, थोड़ा नजदीक हो जाओ, फ्रेम में तभी आएगा। उसे ये तर्क एदम से पसंद आया, कहा- और क्या, वही कहें, यहां वसंत महिला महाविद्यालय के गेट पर घंटों अगोरे( इंतजार) किए तो कुछ नहीं हुआ और अब कामराज कैसे आ गया।
टेलीविजन की स्क्रीन पर आने की तड़प देश के कई हिस्से के लोगों में साफ दिखी। कहीं एक बार दिख जाए तो कहीं होली खेलते हुए दिख जाए। पटना कॉलेज की लड़कियां बोल्ड होकर कह रही थीं- होली है, अच्छा लगा देखकर। न्यूज 24 की संवाददाता रुबिका लियाकत रंगों से बचने की बात करती कि इसके पहले ही स्कूली लौंडे पिल पड़े और उसे भी रंग डाला। खबर कुछ भी नहीं थी, सिवाय ये बताने की रिपोर्टर भी दिल रखते हैं। जी न्यूज को सुबह तक चिंता बनी रही कि राधा की चोली कौन रंगेगा, साढ़े नौ बज गए हैं। इंडिया टीवी होली में कैसे मनाए दिवाली को लगातर फ्लैश करता रहा। कब जलाएं होलिका,शुभ मुहुर्त निकालकर बैठा रहा। इंडिया टीवी ने ज्योतिष नाम की खबर की अच्छी प्रजाति ढूंढ ली है। जैसे घरों में कुछ नहीं हो तो आलू, कहीं भी आलू, कभी भी आलू।
अभी हाल ही में एनडीटीवी इंडिया ने दर्द जताया था कि एक समय ऐसा आएगा कि देश के सारे रिपोर्टर यूट्यूब की खानों में खो जाएंगे, फील्ड की रिपोर्टिंग घट रही है। लेकिन विदेशों में कैसे मनायी गयी देशी होली के लिए यूट्यूब का सहारा लेना पड़ गया। अब ये क्रिकेट थोड़े ही है कि कवर करने कोई रिपोर्टर जाए। एनडी भी यूट्यूब की खाक छानता है। लेकिन ईमानदारी रही कि लिख दिया, सौजन्य से- यूट्यब। आजतक, स्टार सहित दूसरे चैनलों पर होली और राजनीति का कॉम्बी पैक बनाकर चलाया जाता रहा। चुनाव के लिहाज से होली को देखने-समझने की कोशिशें की गयी। इसी क्रम में बिग बी ने मुंबई आतंकवादी घटना को लेकर नहीं मनायी होली, कोशी से आहत हुए लालू ने कुर्ता-फाड़ होली को स्थगित किया और नीतिश बाबू भी इसी कदमताल में रहे, चैनलों ने इसे प्रमुखता से दिखाया। इस खबर से सबकी महानता में इजाफा हुआ।
इन सबके बीच न्यज 24 ने एक नया प्रयोग किया। एक स्पेशल पैकेज तैयार किया। ब्लॉग औऱ डॉट कॉम के भाईयों नें प्रोमो भी किया- न्यूज रुम का रहस्य। प्लॉट है कि रामू यानि रामगोपाल वर्मा एक फिल्म बनाने जा रहे हैं और किस एंकर को क्या रोल मिलने जा रहा है। इसमें देश के प्रमुख टीवी पत्रकारों को लेकर एक प्रहसन तैयार किया गया। सबकी स्क्रीन के जरिए जो एक पॉपुलर छवि बन चुकी है, कुछ की ऑफिस में जो छवि बनी है, उसे भी समेटते हुए, चुटकी लेने की कोशिश की गयी। ऑडिएंस जो महसूस करती है कि सईद अंसारी में बहुत दम नहीं है उसे चैनल ने मजे में कह दिया- चाहते हैं कि लोग इन्हें सीरियसली लें लेकिन लेते नहीं। दिवांग नयी-नयी लड़कियों संत बनकर मीडिया ज्ञान देते नजर आते हैं। चैनल के लोगों के बीच टीआरपी औऱ स्टोरी को लेकर पहले हम, पहले हम की जोर मारकाट मची रहती है, ऐसे में गंगा जमुना संस्कृति की तहजीब बताने की लचर कोशिश की गयी। इस स्पेशल स्टोरी को अगर किसी ने गौर से देखा होगा तो मजाक में ही सही लेकिन सीरियसली समझ सकेगा कि मीडिया के भीतर किस-किस मानसिकता के लोग काम करते हैं, उनमें से कुछ आइटम भी हैं। इस स्पेशल का महत्व ऑडिएंस के लिए इसी रुप में है नहीं तो बाकी सबकुछ बोरिंग है, कुछ मजा नहीं आया देखकर, बिल्कुल भी ह्यूमरस नहीं था। लेकिन एक बात है कि इसमें शामिल पत्रकार अपनी हैसियत समझ रहे होंगे, इस संकेत को समझ रहे होंगे कि अगर देश के प्रमुख एंकर-पत्रकारों की सूचि बनेगी तो उनमे ये शामिल होंगे। क्योंकि शामिल करनेवाले चैनल के बाबा ही रहे होंगे। जो नहीं शामिल किए गए, वो अपने को छुच्छा समझ रहे होंगे। वाकई मीडिया के लोगों के लिए ये हैसियत समझनेवाली स्टोरी रही।
मनोरंजन चैनलों में लॉफ्टर चैलेंज पर आधारित शो को आज के दिन कूदने-फांदने का कुछ ज्यादा ही मौका मिल जाता है। ऐसा लगता है कि आज के दिन पर सबसे ज्यादा अधिकार इन्हीं का है. सोनी के कॉमेडी सर्कस औ स्टाऱ वन के लॉफ्टर चैलेंज में ये साबित हो गया। लेकिन कोई गुस्सा नहीं होता, ये सुनकर कि सुहागरात के दिन पत्नी के पास मैं स्क्रू ड्राइवर,हथौड़े और बाकी चीजें लेकर चला गया, जैसे मैं कोई इंजन खोलने जा रहा हूं। लल्ली अपने परवान पर नजर आयी। छोटे मियां की गंगूबाई सिलेब्रेटी के तौर पर स्टैब्लिश हो गयी है। रियलिटी शो के जरिए नाम कमा चुके सारे वडिंग्स और सिलेब्रिटी की महफिल इ-24 पर जमी, तरीके से गाना-बजाना हुआ। पैसे लेकर राजू श्रीवास्तव ने भी आजतक पर राजू स र्र र्र र्र में तरीके से होली खेली।
टीवी सीरियलों में ये पूरी तरह से स्टैब्लिश हो गया है कि जिस दिन जो त्योहार हो, उस दिन के एपिसोड में भी वही दिखाओ। जस्सू बेन जयंतीलाल जोशी की ज्वाइंट फैमिली( एनडी इमैजिन) में जस्सू बेन के यहां जमकर हई होली। पिछली बार एनडी इमैजिन ने नया प्रयोग किया था। अपने सारे कार्यक्रमों राधा की बेटियां कुछ कर दिखाएगी से लेकर नच ले वे विद सरोज खान तक के सारे कलाकारों को जस्सूबेन के घर जुटाया था और एक की कहानी दूसरे में नत्थी करके दिखाने की सफल कोशिश की थी। वाकई अलग लगा था ऐसा देखना कि राधा की बेटी रुचि, मैं तेरी परछाई हूं के सचिन को जस्सूबेन के घर जाकर पुचकारती है। अबकी बार जीटीवी ने ये काम किया। राणो विजय के सेट पर छोटी बहू को उतारा औऱ करीब साढ़े चार सौ लोगों को( अपने सारे सीरियलों के कलाकार) शामिल किया। समझिए सीरियलों का अब ये चालू फंडा हो गया है।
इस बार सीरियल का नजारा कुछ अलग रहा। सीरियल होली को लेकर दो खेमे में बंट गए। एक में होली मनायी गयी, इसे धूमधाम से दिखाया गया। वंदिनी से लेकर जाने क्या बात हुई तक। लेकिन दूसरी तरफ कहानी उस मोड़ पर आकर अटक गयी है कि ऐसे में होली नहीं मनायी जा सकती। बालिका वधू की आनंदी के घर मातम है। सुगना के घर बारात आनेवाली है लेकिन रास्ते में ही उसके होनेवाले पति प्रताप को डाकुओं ने मार डाला। सुगना की जिंदगी उजड़ गयी। अब कैसे मनाए होली। होली के दिन मंदिर के लिए निकलती है, गांव भर के लोग दूर भागते हैं उससे। जीवनसाथी की मिराज सदमे से पागल हो गयी है, वो अपने गूंगे पति के साथ इधर-उधर भटकती है। उसकी मां को इन सब बातों की याद आती है और गुलाल से भरी थाल रख देती है। खुशी में भी गम को शामिल करना नया ट्रेंड है। के फैक्टर के सीरियलों में ऐसा नहीं था। इस दिन अब सीरियल वोलोग भी देख सकेंगे जिनके घर कभी आज के दिन कुछ................अप्रिय घटना हुयी है, टीवी उनके लिए भी है, फिर से याद करने के लिए, पब्लिक प्लेस में नहीं, फिर भी टेलीविजन के साथ शामिल होने के लिए.
इन सबके साथ धार्मिक सीरियलों नें भी सीरियल के इस पैटर्न को फॉलो किया है और पौराणिक कथाओं की पैश्चिच बनाते हुए वहां भी होली, दिवाली औऱ दूसरे त्योहारों के प्रसंग पैदा कर लिए हैं। कलर्स पर जय श्री कृष्णा को इसी रुप में देखा,चाची( राकेश सरजी की मां) से राधा-कृष्ण के भजन सुनते हुए। बमुश्किल तीन साल के कृष्ण, राधा की उंगली पकड़कर चल देते हैं, ब्रज की होली खेलने। ये हैं जज्बात के नए रंग........।।.

1 comment:

  1. mujhe yaad hai pichhli bar akele baith kar manoj tiwari ke bhojpuriya fagua ke geet sun raha tha . lekin is saal shayad achar sanhita ki wajag se ye sambhaw na ho saka .

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