Monday 27 April 2009

पिक्चर ट्यूब का लोकतंत्र




न्यूज 24 की रिपोर्टर शैलजा सिन्हा ने लगभग दस लोगों से ये सवाल किया कि चुनावी महौल में नेता लोग मुद्दों पर बात न करके एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने में लगे हैं। कभी मनमोहन सिंह आडवाणी के बारे में कुछ कहते हैं तो कभी आडवाणी मनमोहन सिंह के बारे में कुछ कहते हैं। आप इस बारे में क्या सोचते हैं?
लड़कों के हॉस्टल(ग्वायर हॉल,दिल्ली विश्वविद्यालय)में मौजूद डूसू की एक्स प्रेसीडेंट रागिनी नायक सहित बाकी लोगों ने कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए। नेताओं को चाहिए कि वे मुद्दों पर बात करें। लोगों का मानना रहा कि गरीबी,आतंकवाद,आर्थिक मंदी सहित ऐसे दर्जनों मुद्दें हैं जिस पर की बात की जानी चाहिए लेकिन आज मुद्दा आइपीएल बन गया है,एक-दूसरे को भला-बुरा कहना और कोसना बन गया है। एक मीडिया स्टूडेंट होने के नाते मेरी अपनी जो समझदारी बनी उसे मैंने कुछ इस तरह रखा-
देखिए,इसमें पूरा मामला जो है जिस डेमोक्रेसी या लोकतंत्र की बात कर रहे हैं ये इमेज बिल्डिंग की डेमोक्रेसी है। ये छवि बनाने,बिगाडने,करप्ट और इन्जस्ट करने की डेमोक्रेसी है। इसलिए आज छवि इतना ज्यादा जरुरी हो गया है। मुद्दों पर राजनीति हो ही नहीं रही है और जैसे-जैसे अन्य माध्यमों का विकास होगा,मुद्दे की राजनीति खत्म हो जाएगी। आप देखिए कि क्यों करोड़ों रुपये लगाकर इतने विज्ञापन बनाए जा रहे हैं? क्यों वर्चुअल स्पेस जेनरेट किया जा रहा है? उसमें आडवाणी की कहें या राहुल गांधी की कहें,ऐसी छवि बनायी जो रही है जो जोश से लवरेज है। वो रातोंरात हिन्दुस्तान को बदल देने का जज्बा रखता है। लेकिन दूसरी तरफ ये भी देखिए कि वही इंडिया शाइनिंग करोड़ों रुपये लगाने के बाद भी पिट जाता है। जब तक इस इमेज बिल्डिंग की डिकोडिंग पर्सनल लाइफ में वोटर टू वोटर नहीं होगा,एक ऑडिएंस को जब तक मतदाता के रुप में कन्वर्ट नहीं करेंगे,ये इमेज बिल्डिंग आधारित डेमोक्रेसी जो बन रही है,ये बुरी तरह पिट जाएगी। इसलिए
मुद्दों का नहीं होना जैसा कि मेरे कुछ दोस्तों ने कहा,कोई बड़ी समस्या नहीं है। आनेवाले समय में सारे मुद्दे गायब हो जाएं,कोई बात नहीं। जरुरत सिर्फ इस बात की है कि आप जो छवि बना रहे हैं, टेलीविजन के जरिए,विज्ञापन के जरिए,उसकी डिकोडिंग मतदाता के सामने हो जाए बस।
आज से चार दिन पहले एनडीटीवी इंडिया के कार्यक्रम विनोद दुआ लाइव में अपूर्वानंद(प्राध्यापक और समाजशास्त्री,डीयू ) ने विज्ञापन आधारित राजनीति पर चिंता जताते हुए कहा कि- हमारी चिंता इस बात की है कि इस तरह की राजनीति से राजनीतिक व्यक्तियों से आम जनता का संवाद धीरे-धीरे खत्म हो ता चला जाएगा जो कि किसी भी लोकतंत्र के लिए चिंता पैदा करनेवाली स्थिति है।
यह बात साफ है कि विज्ञापन और टेलीविजन के जरिए लोकतंत्र की जो शक्ल बन रही है वो पार्टी कार्यकर्ता,प्रत्याशी और मतदाता के सीधे हस्तक्षेप से बनने वाले लोकतंत्र से बिल्कुल अलग है। इसे मैंने टेलीविजन,राजनीतिक विज्ञापन और छवि निर्माण का लोकतंत्र पर लेख लिखने के क्रम में( नया ज्ञानोदय के लिए) पिक्चर ट्यूब से पैदा लोकतंत्र या वर्चुअल डेमोक्रेसी कहा है जहां राजनीतिक रुप से सक्रिय होने के स्तर पर हमारी भूमिका बस इतनी भर है कि हम ज्यादा से ज्यादा टेलीविजन देखें,उनके चिन्हों को समझें औऱ एहसास करें कि हम सक्रिय मतदाता या नागरिक हैं।

1 comment:

  1. सही कहा विनीत भाई आपने ये इमेज बिल्डिंग की डेमोक्रेसी है। पर उस इमेज में भारत भी होगा कि नहीं। खैर आज आपका ब्लोग चमक दमक रहा है। और चैनलो के logo के ऊपर दिये टाईटल काफी पसंद आए है । वैसे ये आपक़बूली क्या होता है?

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