Wednesday 20 May 2009

न्यूज चैनलों को याद आता है आम आदमी


मूलतः मीडिया मंत्र मई अंक में प्रकाशित


धारावी(मुंबई) की सीढ़ियों से उतरते हुए एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ ने गुनगुनाना शुरु किया- आ जा,आ जा जिंद शामयाने के तले,आ जा जरीवाले नीले आसमां के तले, जय हो....। इस दो लाइन को गाने के क्रम में वे आसमान की ओर देखते हैं,उस जमीन की ओर देखते हैं जहां कचरे के ढेर के बीच खड़े धारावी के बच्चे रो रहे हैं, बिलख रहे हैं, चार-पांच साल की छोटी बच्ची बर्तन मांजने और पानी ढोने का काम कर रही है और कुछ बच्चे अवाक् होकर इधर-उधर ताक रहे हैं। स्त्रियां सपनों का घर दिखानेवाले न्यूकोलेक पेंट के खाली डिब्बों में पानी भरकर ऐसे चली आ रही है कि आपको देखकर ही अंदाजा लग जाएगा कि पानी भरने के लिए इन्हें रोज अपने इलाके से बाहर से बाहर जाना पड़ता है। विनोद दुआ को आगे जय हो का गीत नहीं गाना है बल्कि मुद्दे की बात करनी है औऱ मुद्दे की बात है कि- जय हो के राइट्स कांग्रेस ने ले लिए लेकिन कांग्रेस मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। ये मेरी आवाज है,ये मेरा दिल है,मेरा मुल्क है,मेरा शहर है और ये है धारावी। जैसे कमल के खिलने के लिए कीचड़ का होना जरुरी है, वैसे ही कांग्रेस को जिंदा रहने के लिए स्लम का होना जरुरी है।....जय हो।( एनडीटीवी इंडियाः 9.31 बजे रात, 21 मार्च 09 )।

इस रिपोर्ट के जरिए विनोद दुआ बताना चाहते हैं कि धारावी से कांग्रेस के एमपी( वर्षा गायकवाड़) रहे हैं और वहां विकास का कुछ भी काम नहीं हुआ है। इसके वाबजूद भी कांग्रेस जय हो का नारा लगाने से बाज नहीं आ रही है.स्लमडॉग पर फिल्म बनानेवाले लोग भी आए और अपना काम करके चले गए लेकिन यहां कुछ भी नहीं बदला है। इसलिए यहां आकर फिल्म को याद करने पर कोई भाव नहीं जगता। वस्तुस्थिति से रु-ब-रु करानेवाले और कांग्रेस मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती... बोलकर अपने साहस और बेखौफ अंदाज का परिचय देनेवाले इस पत्रकार को देखकर,मेरा क्या देश के किसी भी कोने की जनता का मन उसके जज्बे को सलाम करने का कर जाएगा। और फिर सिर्फ विनोद दुआ ही क्यों,ऐसे मौके पर तो दूसरे पत्रकारों को टेलीविजन स्क्रीन पर देखकर एक आम ऑडिएंस की भी यही समझ बनेगी- जिसका कोई नहीं है उसका टेलीविजन है, चारो ओर से हताश-परेशान हो जाने पर, उसके लिए न्यूज चैनल अधिकार की लड़ाई लड़ेगें। एक उदाहरण और देखिए।

एक तरफ कांग्रेस अपनी उपलब्धियों की चाशनी परोस रही है,दूसरी तरफ मोहिनी रो रही है। मोहिनी का दर्द यह है कि इसकी मां इसे अपनी बांहों में भरके दूध नहीं पिला सकती क्योंकि उसके दोनों हाथ कटे हुए हैं।...कांग्रेस आम आदमी के हाथ की मजबूती की बात करती है,यहां पूरा परिवार हाथ के लिए कांग्रेस दफ्तर के कई दिनों से चक्कर लगा रहे हैं। लेकिन इनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं। ( उमाशंकर सिंह की रिपोर्टः एनडीटीवी इंडियाः 9.01 बजे रात, 21 मार्च 09)।

इन दोनों रिपोर्टों के दौरान आदमी की तस्वीर दो स्तरों पर उभरकर सामने आती है। एक जो न्यूज चैनल के कैमरामैन मुहैया कराते हैं और दूसरी तस्वीर जो कि वीडियो एडिटर ने कांग्रेस के राजनीतिक विज्ञापनों से काटकर लगाए हैं। दोनों रिपोर्टों में विज्ञापनों की तस्वीरें इसलिए चस्पाए गए हैं ताकि न्यूज चैनल सीधे-सीधे व्यंग्य कर सके,कटाक्ष कर सके। एक तरह से कहें तो विज्ञापन की तस्वीरों को झुठला सके। धारावी की बच्चियां मैली-कुचैली है,बिलख रही है और कूड़े की ढेर में कुछ चुन रही है. विज्ञापन की बच्चियां कूदते हुए, खुशी से स्कूल जा रही है,गांव में रहकर भी लैपटॉप पर काम कर रही है। धारावी का बुजुर्ग पुराने टिन के डब्बे पीट रहा है और विज्ञापन का बुजुर्ग नोट गिन रहा है। सुनीता आसरे का पति हाथ के पीछे दौड़ने के दर्द को विस्तार से बता रहा है और विज्ञापन का पति अपनी पत्नी के पेट में पल रहे बच्चे की धड़कन को सुनकर खुश हो रहा है। हाथ के लिए पूरा परिवार भटक रहा है और विज्ञापन में राजू बेटे को इस हाथ के जरिए ने देश की तकदीर बदल जाने की कहानी समझाया जा रहा है। इन दोनों जोन के आम आदमी को देखें तो आपको लगेगा कि ये दो अलग-अलग हिन्दुस्तान है। एक चमकीला हिन्दुस्तान औऱ दूसरा चरमराया हुआ हिन्दुस्तान। पत्रकार इसे चरमराए हुए हिन्दुस्तान के प्रति अपनी संवेदना रखता है और चमकीले हिन्दुस्तान को लेकर अविश्वास जाहिर करता है। उसकी नजर में आम आदमी की यह तस्वीर मैनिपुलेटेड है, झूठ है,लोगों को धोखे में रखने की कोशिश भर है।

कमजोर और लाचार होने और दिखाए जाने के अलावे आम आदमी की एक दूसरी तस्वीर न्यूज चैनलों की पकड़ में आती है। यह वह आम आदमी है जो अपने हालातों को लेकर हताश नहीं होता, उसे मतदान की ताकत पर भरोसा बरकार है। राजनीति पार्टियों और न्यूज चैनलों को इनकी ताकत का एहसास ऐसे ही चुनावी महौल में होता है। इसी वक्त उन्हें एहसास कराया जाता है कि उनका एक वोट पूरे हिन्दुस्तान के नक्शे को बदल सकता है। सालों से टेलीविजन स्क्रीन पर चिपकी रहनेवाली जनता को चैनल अब देश की तकदीर बनाने और बदलनेवाले राजनीतिक पुरुषों से सवाल-जबाब करने का मौका देते हैं। एक आम आदमी का सवाल है- माननीय नितीशजी से एक सवाल पूछना चाहूंगा कि उन्होंने कई बार कहा है कि बिहार बदल रहा है लेकिन अबर लोकसभा में जिस तरह दलबदलुओं को टिकट दिया गया है कि कल वे किसी दूसरे दल में थे, आज बुलाए, ज्वायन कराए, कल टिकट दे दिए, इससे बिहार का किस तरह का माखौल पूरे राष्ट्र में फैलाना चाहते हैं।( स्टार न्यूज-कहिए नेताजीः 8.15 बजे, 26 मार्च 09)। जिस धारावी की दास्तान को विनोद दुआ स्लमडॉग मिलेनियर से पैच अप करके दिखाते हैं वहां से एक आम महिला सवाल करती है- यहां पर जब आप धारावी की बात कर रहे हैं, धारावी की रिडेवलपमेंट की बात कर रहे हैं लेकिन मेरा दोनों नेताजी से सवाल है कि रोजमर्रा की जिंदगी में हमलोग जो एक्सपीरियेंस करते हैं, क्या आपलोगों ने उसे कभी नजदीकी से देखा भी है। जैसा कि अभी वर्षाजी ने कहा कि धारावी बदल गयी है लेकिन आज भी धारावी की गलियों में जाकर देखें तो कई लोग अपना चूल्हा वहीं जलाते हैं जहां कुत्तियां औऱ बिल्लियां वहीं बैठकर रहती है। ( स्टार न्यूज-कहिए नेताजीः 8.07 बजे,23 अप्रैल 09)। आगे भी जारी...

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