Tuesday 7 July 2009

बेलगाम हुए आसाराम,मीडिया को कहा कुत्ता




अब तक जिस मीडिया ने आसाराम को अपने जरिए लोगों के घर-घर तक पहुंचाने का काम किया,उनके संयम और प्रवचन की मार्केटिंग करते हुए,उनके नाम पर एक बड़ा बाजार पैदा करने में उनकी मदद की,आज वही मीडिया आसाराम की नजर में कुत्ता है। गुरु पूर्णिमा के मौके पर जब कि उनके हजारों भक्त गुरु वचन सुनने के लिए बेचैन होते रहे,संयमित जीवन औऱ जुबान रखने का पाठ सीखने आए,ऐसे मौके पर दुनियाभर के लोगों को संयम और संतुलन का पाठ पढ़ानेवाले आसाराम ने उनके सामने मीडिया को कुत्ता कहा। शायद वो समझ नहीं पा रहे हैं कि मीडिया के लिए वो जिस तरह की भाषा और जुबान का प्रयोग कर रहे हैं उसकी तासीर कैसी होगी और ये लोगों के बीच किस तरह का असर पैदा करेगा? उनके संयम औऱ संतई का जो लबादा जगह-जगह मसक रहा है उसके भीतर झांककर देखने की कोशिश में,मीडिया देश की ऑडिएंस के सामने किस एप्रोच के साथ पेश करेगा और ऑडिएंस उस पर किस तरह रिएक्ट करेगी,इसका अंदाजा शायद उन्हें नहीं है।

फेसबुक पर लिखी मेरी बात पर हरि जोशी ने कमेंट किया है कि -ऐसे बाबाओं को मालूम है कि उनके भक्त देख, सुन और समझ नहीं सकते। इस आधार पर मान लिया जा सकता है कि उनके खिलाफ जो भी चीजें निकलकर सामने आ रही है और आगे भी आने की संभावना बनी है और जो कुछ भी मीडिया के जरिए प्रसारित किया जा रहा है,उसका असर उनके भक्तों पर नहीं होगा। जैसा कि उनके भक्त लगातार कहते आ रहे हैं कि उनके पीछे मीडिया के लोग पड़ गए हैं और उन्हें फंसाने की जबरदस्ती कोशिश में लगे हैं। लेकिन अस्सी करोड़ से ज्यादा हिन्दू आबादी वाले इस देश में हर इंसान आसाराम का भक्त ही होगा,क्या ऐसी गारंटी कार्ड लेकर आसाराम की जुबान इतनी गैरजिम्मेदार होती चली जा रही है। क्या ऐसा वो उन शिष्यों के बूते कह रहे हैं जो कि अपनी दबंगई से न्यायिक फैसले को बाधित करने की कोशिश करेंगे,उन शिष्यों के भरोसे जहर उगल रहे हैं जो अपने हाथों से माला और झोला झटककर,अपनी सारी ताकत कैमरे को तोड़ने और चैनल के रिपोर्टरों को लहुलूहान करने में लगाते हैं,उनकी जुबान को बंद करने का कुचक्र रचते हैं। अगर वो ऐसा सोचते हैं जो कि व्यवहार के स्तर पर दिखता है तो संयम और दैवी आचरण का पाठ पढ़ते और पढ़ाते हुए देश के भीतर जो नस्ल तैयार हो रहा है,वो आसाराम की साधना पद्धति पर सवालिया निशान खड़ा करता है औऱ इसकी सफाई में बोलने के लिए कहीं कुछ नहीं बचता।

दूसरी बात, अगर इस गारंटी कार्ड को ध्यान में रखते हुए भी ये मान लें कि सब उनके भक्त और शिष्य ही हैं(जो कि नहीं होनेवाले लोगों पर तोहमत लगाना होगा)तो क्या लाइ डिटेक्टर में जिस तरह से तीन शिष्यों ने आश्रम में काला जादू होने की बात कही है,उन शिष्यों की संख्या में इजाफा होने में बहुत वक्त लगेगा। इस बात की संभावना कोई जादुई यथार्थ के तहत नहीं की जा रही है,हम किसी भी तरह से उस दिशा में नहीं जा रहे हैं कि आसाराम के शिष्यों को सद् बुद्धि मिलेगी और वो मानवीयता का पक्ष लेते हुए आश्राम के भीतर अगर कुछ गड़बड़ हो रहा है तो उसे हमारे सामने रखने का काम करेंगे। हम आसाराम सहित देश के दूसरे किसी भी तथाकथित संतों का विरोध इस स्तर पर नहीं कर रहे हैं कि उनका नैतिक रुप से पतन होता जा रहा है, वो जिस मानवीयता और संयम का पाठ पढ़ाते आ रहे हैं,जिस सादगी की शिक्षा देश औऱ दुनिया के लोगों को देते आ रहे हैं,व्यक्तिगत स्तर पर वो खुद बुरी तरह पिट चुके हैं। हम किसी तरह का कोई आरोप नहीं लगा रहे हैं कि बिना वातानुकूलित आसन के इऩसे सादगी का प्रवचन नहीं दिया जाता। ऐसा कहना किसी भी इंसान के लिए मानसिक रुप से कमजोर होने की स्थिति में कोसने भर का काम होगा औऱ फिलहाल देश की एक बड़ी आबादी इस स्थिति में नहीं आयी है। हम इन सबसे बिल्कुल अलग बात कर रहे हैं।



आसाराम औऱ देश के बाकी दर्जनों तथाकथित संतों और महामानवों को लेकर श्रद्धा,भक्ति,विरोध या हिकारत पैदा करने के पहले इस बात को समझ लेना जरुरी है कि इनकी जो कुछ भी छवि हमारे सामने है वो पूरी तरह स्वयं उनके द्वारा निर्मित छवि नहीं है। इसे आप ये भी कह लीजिए कि साधना,आध्यात्म और ज्ञान के स्तर पर प्रसारित और विकसित छवि नहीं है। ये शुद्ध रुप से बाजार द्वारा पैदा की गयी छवि है,धार्मिक कर्मकांडों को रिवाइव करने की कोशिशों में इन महामानवों को स्टैब्लिश किया गया है। इस क्रम में मीडिया की भूमिका इस अर्थ में है कि ये महामानव क्या बोलते हैं औऱ वो कितना व्यावहारिक है जानने से ज्यादा जरुरी होता है कि कौन किस चैनल पर आ रहे हैं। चैनल पर देख-देखकर लोगों ने इन्हें बहुत बड़ा संत मानना शुरु किया है। क्योंकि टेलीविजन देखते वक्त ऑडिएंस के सामने एक आम धारणा बनती है कि किसी भी इंसान को अगर चैनल आधे घंटे या एक घंटे के प्रवचन के लिए बुलाता है तो जाहिर है उसमें कुछ न कुछ खास बात होगी। ये टेलीविजन की ताकत ही है जो कि आम को खास में कन्वर्ट करने का माद्दा रखता है। इसके साथ ही होता ये है कि जैसे-जैसे चैनल पर इन तथाकथित महानुभावों के आने की फ्रीक्वेंसी बढ़ती है,यानी रोज आने लगते हैं,एक निश्चित दर्शक वर्ग तैयार होने लग जाता है। ये दर्शक वर्ग इन महामानवों और संतों को न केवल उनकी बोली गयी बातों के आधार पर उन्हें पसंद करता है बल्कि उनके बोलने के अंदाज,बॉडी लैंग्वेज,एसेंट और स्क्रीन पर देखते हुए हुए आंखों को जो चीजें सुहाती है,उस आधार पर उसे पसंद करना शुरु करती है। चैनल पर आना किसी भी संत के लिए ब्रांडिंग का काम करता है। धीरे-धीरे ये दर्शक उनके भक्तों में कन्वर्ट होना शुरु करते हैं,लोगों के बीच उनकी साख जमती है और उनका नेटवर्क फैलता चला जाता है।

अपनी साख के दम पर संत लाइव प्रवचन करने का काम शुरु करते हैं,जगह-जगह जाकर प्रवचन करना शुरु करते हैं। देश के हर शहर में दो-चार धन्ना सेठ मिल ही जाता है जो उनके लिए तमाम तरह की सुविधाओं का प्रबंध करता है। उसके बीच भी भाव यही होता है कि वो टीवी में आनेवाले संत के लिए इंतजाम कर रहा है। टीवी पर आने की ताकत संतों के साथ हमेशा जुड़ी रहती है। ये टीवी पर आने की ताकत ही है कि किसी संत या बाबा को सोशल कमंटेटर के तौर पर जाना-समझा जाने लगता है,हर मसले पर उनकी बाइट ली जाती है। ऐसे में आप समझ सकते हैं कि संतों के साथ मीडिया कर्म कितना बड़े स्तर पर जुड़ता है। प्रवचन एक मैनेजमेंट का हिस्सा बनता है और मीडिया मैनेजमेंट उसकी एक जरुरी कड़ी। यहां तक आते-आते संत की छवि,उनकी प्रसिद्धि और सामाजिक दबदबा काफी कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि वो मीडिया के साथ अपने को किस हद तक फ्रैंडली कर पाते हैं।

आज आसाराम को लेकर टीवी चैनल्स और मीडिया ने जो भी रवैया अपनाया है,उसका आधार सिर्फ इतना नहीं है कि उनके आश्रम से बच्चे गायब हुए,वो लगातार जमीन विवादों में फंसते गए हैं,उनके नाम पर कई तरह की अनियमितताएं पायी गयी है। बल्कि इस सबके पीछे ठोस आधार है कि आसाराम मीडिया मैनेजमेंट के स्तर पर लगातार विफल होते जा रहे हैं। मीडिया ने जितनी विशाल छवि निर्मित की है,उसे वो संभाल नहीं पा रहे हैं। इसलिए आज फजीहत में पड़े आसाराम के लिए कोई जनशैलाव उमड़ पड़ता है तो इसे इस रुप में भी समझा जा सकता है कि आसाराम ने अपना मीडिया मैंनेजमेंट दुरुस्त कर लिया है। अगर उनके विरोध में देश की जनता खड़ी होती है तो इसका एक अर्थ ये भी है कि मीडिया के स्तर पर वो लगातार पिछड़ रहे हैं,यहां श्रद्धा के उपर छवि हावी हो रही है और कोई भी नहीं चाहेगा कि अपनी श्रद्धा टेलीविजन के हिसाब से बताए गए दागदार संत के आगे उड़ेल दे।

आसाराम और मीडिया के बीच के मसले को पढ़िए- मीडिया मार्ग पर

4 comments:

  1. एक एक करके सारे राज़ सामने आ रहे हैं.

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  2. दुरुस्‍त फरमाया विनीत. ये साधु केवल गाली नहीं देते हैं, अपशब्‍द ही नहीं बोलते हैं; हर वो कर्म करते हैं जिसे हमारा भारतीय संविधान अपराध की श्रेणी में रखता है. पर धर्मांधता ऐसी कि अकसर इनकी हरकतें नज़रअंदाज़ हो जाती है. इसकी जमकर भर्त्‍सना होनी चाहिए.

    कल शाम को किसी चैनल पर देख रहा था महिला, पुरूष, जवान, बच्‍चे, नौकरीशुदा लोग, गृहणियां, विद्यार्थी: सब एक सुर से किसी बाबाजी के चमत्‍कार के कारण अपनी मुराद पुरा होने और बिगड़े काम बन जाने का गाथा गाए जा रहे थे. एक संभ्रांत परिवार की किसी प्‍यारी सी बच्‍ची ने बताया कि उसे मौसम्‍मी का जूस पीना बहुत अच्‍छा लगता है, जब तक बाबाजी के शरण में नहीं आयी थी तब तक उसके पापा भी उसे जूस लाकर नहीं देते थे, बाबाजी के दरबार में आते ही सब ठीक हो गया. अब तो वो जिधर जाती है उधर जूस ही जूस होता है.

    तो भइया, इस 'आस्‍था' का क्‍या कीजिएगा. रही बात बापूजी की तो अब और क्‍या छुपा रह गया है. उधर लोगों को देख ही रहे हैं कि कैसे हाथों के नाखून को आमने-सामने रखकर रगड़ते फिरते हैं. सब बाबा लोगों का ही चमत्‍कार है न.

    विनीत एक बार और, आसाराम ने निराश और क्रोधित होकर मीडिया को कुत्ता कहा. कुत्ता क्‍या कहा, एक तरह से उसने देख लेने तक की धमकी दे डाली. कहा 'पहले जिन लोगों ने आरोप लगाया था उनका क्‍या हुआ ये तो देख लो. फिर भी हम सबका मंगल चाहते हैं.'

    मेरे खयाल से विनीत मी‍डिया को अब ये समझ आ जाना चाहिए कि ऐसे ही बाबाओं को चैनलों पर ला-ला कर, उनके बारे में गा-गा कर लोगों को रिझाने से अब बचना चाहिए. बहुत से मसले हैं जिन पर मीडिया अपना ध्‍यान केंद्रित कर के अपना और औरों का भला कर सकता है. दिक्‍कतें मीडिया वालों की भी तो कम नहीं है. उन्‍हें लगता है कि बाबा खूब बिकते हैं. और ढंग का माल लाओ तो सही, लाओगे है ही नहीं और कहोगे पब्लिक यही देखना चाहती है.
    सुबह-सुबह खबरिया चैनलों पर जब भांति-भांति का चोगा-चोला धारण किए स्‍त्री-पुरुष धर्मरक्षक और पुरोधा आते हैं तो देखते नहीं कैसे डरावने लगते हैं. कई बार वे क्राइम रिपोर्टरों जैसे लगते हैं. वही धमकी भरा अंदाज़, कमज़ोर दिल का आदमी बस बेहोश हो जाए!!

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  3. ऐसी श्रद्धा का अब श्राद्ध हो जाना चाहिए।

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  4. आशाराम बापू ने मीडिया को कुत्‍ता कहा। आप सोच सकते हैं कि बाबा ने मीडिया को भेडि़या या कुछ और क्‍यों नहीं कहा। आपने मीडिया फ्रैंडली शब्‍द का प्रयोग करते हुए लिखा है कि मीडिया ने बाबा को ब्रांड बना दिया। ब्रांड बनने के लिए बाबा ने मीडिया मैनेज किया। थैलियां खोलीं। और अपने हक में मीडिया का इस्‍तेमाल किया। कुत्‍ता स्‍वामीभक्‍त होता है। टुकड़ा डालने वाले के सामने पूंछ हिलाता है। लेकिन बाबा ये भूल गए कि कुत्‍ते की पूंछ पर अगर पांव रख दो तो वह भौंकता भी है और काट भी सकता है...आज अगर मीडिया को बाबा के शब्‍दों का दर्द है तो उसे ये याद रखना चाहिए कि ऐसे बहुत सारे चैनलों का अर्थशास्‍त्र बाबाओं के टेप चलाकर चलता है। चैनल को अर्थव्‍यवस्‍था देखनी है और बाबा को ब्रांड बनना है। ब्रांड बनते ही बाबा के कारोबार चलने लगते हैं...चमक बढ़ जाती है और फिर भक्‍तों की भीड़ में इजाफा होता ही जाता है क्‍योंकि इस देश में तमाम सारे ऐसे धनपशु हैं जो मसालों में लीद मिलाने जैसे धंधों से कमाए गए पैसे से खुद को धर्मात्‍मा दिखाना चाहते हैं और कुछ भगवान के नाम पर अपना विवेक इस्‍तेमाल नहीं करते...इसलिए मैने कहा था कि बाबा के भक्‍तों की आंखों पर पट्टी है।

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