क्या इंसान की जिंदगी में सेक्स,शारीरिक संबंध और स्त्री-पुरुष के बीच होनेवाली गतिविधियां और उस बीच महसूस की जानेवाली भावनाएं ही जीवन के सबसे बड़े सच हैं। क्या जिंदगी का सच यही जाकर खत्म हो जाता है? न्यूज24 के एंकर अखिलेश आनंद ने चैनल के विशेष कार्यक्रम ये सच नहीं आसान में पिछले सप्ताह स्टार प्लस पर शुरु हुई रियलिटी शो के एंकर राजीव खंडेलवाल से जो सवाल किए उसके मिलते जुलते भाव यही है कि क्या ये शो सच के सवाल को उसकी सीमा को बहुत ही सीमित करके नहीं देख रहा? क्या जीवन में इन सबके अलावे कोई दूसरा बड़ा सच नहीं हो सकता। हालांकि इस मामले में राजीव खंडलेवाल की अपनी समझ है कि इंसान के जीवन में यही वो जरुरी पहलू हैं जो कि उसके लिए सबसे ज्यादा मायने रखते हैं। जाहिर तौर पर वो पहलू जिसे कि वो आसानी से सार्वजनिक नहीं करता लेकिन दूसरी तरफ जब वो इन रिश्तों के बीच घुलता रहता है,कैंसर की तरह उसके बीच फैलने लगता है तो वो उसे लोगों के बीच बांटना चाहता है,शेयर करना चाहता है। न्यूज24 पर आकर राजीव खंडेलवाल ने ये स्वीकार किया है कि आगे भी जाकर कार्यक्रम में इसी तरह के सवाल पूछे जाएंगे। सवलों के मिजाज को लेकर बहुत ज्यादा बदलाव की गुंजाइश नहीं है। मोटे तौर पर सच का सामना के जरिए हम ये निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि निजी जीवन और बहुत ही पर्सनल फीलिंग के मौके ही इंसानी जीवन का सबसे बड़ा सच होता है। अब हम इस बात पर बहस कर सकते हैं कि क्या ऐसा मानना या होना सही है और अगर है तो इसके पहले और बाद के,आजू-बाजू के जो सच हैं उसका क्या होगा?
स्टार प्लस पर शुरु होनेवाले कार्यक्रम सच का सामना के जब सिर्फ प्रोमो ही दिखाए गए तभी से न्यूज चैनलों ने अटकलें लगानी शुरु कर दी कि ये शो जबरदस्त तरीके से कई विवादों को जन्म देगा। इसके ठीक पहली वाली पोस्ट में हमने लिखा भी कि इन विवादों को लेकर चैनल के अलग-अलग डेस्क को कई मसाले मिलेंगे। कार्यक्रम के उस प्रोमो से जिसमें कि कांबली की ओर से सचिन तेंदुलकर पर कुछ कमेंट किए गए,जिसमें ये लगातार दिखाया जाता रहा( जो कि अब भी जारी है)कांबली का मानना है कि अगर तेंदुलकर ने मेरा साथ दिया होता तो करियर लाइफ लंबी होती,उसके बाद से ही न्यूज चैनलों ने कांबली और तेंदुलकर पर स्पेशल स्टोरी बनानी शुरु कर दी। कुल मिलाकर कार्यक्रम शुरु होने से पहले से ही उसकी प्रकृति और तासीर को न्यूज चैनलों ने फिक्स कर दिया। इस आधार पर कुछेक चैनलों ने इस बात की आलोचना भी कि ये शो लोगों के बीच के आपसी रिश्तों में खटास पैदा करने का काम करेगा। कांबली जैसे लोगों पर कमेंट करने शुरु किए कि एक करोड़ के चक्कर में दोस्ती जैसे रिश्ते को ताक पर रख आए। यहां तक चैनलों ने सच का सामना के लिए राजी नहीं होनेवाले जैकी श्राफ और शेखर सुमन जैसे शख्सियतों को ज्यादा महान और बेहतर बताने की कोशिशें करते रहे।
लेकिन ऑडिएंस के बीच सच का सामना के जबरदस्त ढंग से सराहे जाने के बाद न्यूज चैनलों ने दो-तीन दिन के भीतर अपने पैंतरे बदल लिए। उन्हें अब ये समझ आने लगा है कि इस शो का एकमात्र एंगिल विवाद नहीं हो सकता है,इसके भीतर से कई चीजें निकलकर आने की भरपूर संभावना है.इस लिहाज से ये मनोरंजन चैनलों पर जारी मौजूदा किसी भी सीरियल और रियलिटी शो से ज्यादा दुधारु शो है जिस पर कई तरीके से कार्यक्रम बनाए जा सकते हैं,इसे कई स्टोरी आइडिया में फिट करके आधे घंटे का कार्यक्रम बहुत ही मजे से बनाया जा सकता है। शायद यही वजह है कि कल एनडीटीवी इंडिया से लेकर इंडिया टीवी तक ने इस शो के बहाने सच के फ्लेवर को अपने-अपने ढंग से खोजने की कोशिश की बल्कि न्यूज24 के अखिलेश आनंद ने तो यहां तक कहा कि जिस समाज में झूठ का बोलबाला है,ऐसे में इस शो ने काफी हद तक हलचल तो जरुर मचा दी है। लंबे समय तक इसके विरोध में कुछ न दिखाने और कहने की स्थिति में न्यूज चैनल अब इस कार्यक्रम की चिरौरी करने में जुट गए हैं। संभव है हर ब्रेक के बाद इस शो का विज्ञापन भी एंकर को ऐसा करने के लिए प्रेरित करता हो। बहरहाल,
न्यूज24 ने ये सच नहीं आसान नाम से जो स्पेशल प्रोग्राम दिखाया उसमें बाकी बातों की तफसील में न जाएं तो शो में भाग लेने आयी मनीषा,सीनियर जर्नलिस्ट की बात सबसे ज्यादा दमदार और ठहरकर सोचनेवाली लगी। मनीषा का साफ मानना है कि स्त्री का सच पुरुषों के सच से अलग होता है। द्रौपदी ने भी सच कहा था कि अंधे के बच्चे तो अंधे ही होते हैं,सीता ने भी कहा था कि रावण के साथ उसके कोई संबंध नहीं है लेकिन आप समझ सकते हैं कि उसे किस रुप में लिया गया। वही कृष्ण ने भी दुर्योधन से झूठ बोला,राम ने भी झूठ बोला और उसे अलग तरीके से लिया गया। इसलिए हमें इस शो में भी एक स्त्री के बोले गए सच और पुरुष के बोले गए सच में फर्क करना होगा। जाहिर है स्त्री अपने सच को उतनी सहजता से बोलने की स्थिति में नहीं होती। सच का सामना का पक्ष लेते हुए एंकर अखिलेश आनंद ने गांधीजी के सात सत्य के प्रयोग की चर्चा की जो कि संदर्भ के अभाव में बेतुका ही लगा। सच का सामना के बहाने सच पर बात करते हुए अधिकांश चैनल के एंकर ये समझ ही नहीं पा रहे हैं कि जिस सच को सामने लाने की बात ये शो कर रहा है वो जीवन के बाकी के सच से अलग है। इसलिए सच के जो अलग-अलग एडीशन(संस्करण) है उसके साथ इस शो में जबाब के तौर पर पेश किए गए सच से घालमेल करना स्थितियों का सरलीकरण भर है। राजीव खंडलेवाल की हां में हां मिलाते हुए औऱ शो से अतिरिक्त रुप से प्रभावित होते हुए अंजना कश्यप ने इस विशेष कार्यक्रम के खत्म होने की घोषणा करते हुए स्पष्ट किया कि इस कार्यक्रम के माध्यम से वो इस शो के तमाम पहलुओं पर सोचने और सवाल पैदा करने के मौके को पेश करना चाह रही थी।
सच का सामना के आने के बाद से लाइ डिटेक्टिव औऱ पॉलीग्राफी ये दो शब्द बहुत ही तेजी से पॉपुलर हुए हैं। अब तक अपराधियों के लिए प्रयोग में लायी जानेवाले इस प्रोसेस से एक आम ऑडिएंस का सरोकार न के बराबर रहा है। न्यूज चैनलों ने इसे जिस रुप में दिखाया है उसके हिसाब से आम लोगों के बीच इसे लेकर डर भी पैदा हुआ है। इस शो ने पॉलीग्राफी को फैमिलियर बनाने का काम किया है। संभवतः इसलिए स्टार न्यूज सच का सामना स्पेशल स्टोरी में पॉलीग्राफी मशीन के काम करने के तरीके से लेकर इसके प्रभाव और इससे मिलनेवाली फाइंडिंग के बारे में तफसील से जानकारी देने की कोशिश की। कार्यक्रम का एक बड़ा हिस्सा इस मशीन की कार्यप्रणाली को समझाने और सच का सामना में इसके प्रयोग को सामने में लगा रहा।
अपनी आदत के मुताबिक इंडिया टीवी ने सच का सामना में भी दावे पेश करता नजर आया। उसने कार्यक्रम के शुरु होते ही दावा किया कि वो स्टार प्लस पर आज सच का सामना शुरु होने से आधे घंटे पहले ही इसे इंडिया टीवी पर दिखाएगा। एंकर ने अपनी तरफ से ही संभावित सवाल तैयार किए औऱ दर्शनशास्त्री सुजाता मीरी की मदद से इस पर अटकलें लगानी शुरु कर दी कि अगर आज युसुफ हुसैन से शारीरिक संबंध,रिश्तों और तीन पत्नियों के बारे में पूछा जाएगा तो उनका क्या जबाब होगा? इस मामले में सुजाता मीरी बार-बार इस बात पर जोर देती रही कि युसुफ साहब एक्टर हैं,वो कैमरे को फेस करते रहे हैं,इसलिए उन्हें इन सब सवालों के जबाब देने में कोई परेशानी नहीं होगी,और रसिक तो हैं ही। लेकिन इससे अलग साइकियाट्रिस्ट सुरभि सोनी की समझ रही कि कोई भी इंसान भले ही कैमरे के आगे कुछ बी बोल देता हो लेकिन अपनी बेटी के सामने सबकुछ सच कहने में थोड़ी तो परेशानी जरुर होगी। वैसे इंडिया टीवी पर सच बोलने और उसके बाद इंसान और उसके रिश्तों पर पड़नेवाले असर को लेकर चल रही बहस भी दिलचस्प रही।
सच दिखाने की दौड़ में एनडीटीवी इंडिया का अंदाज बाकी के चैनलों से अलग रहा। स्पेशल रिपोर्ट में रवीश कुमार ने ये कहीं भी पकड़ में आने नहीं दिया कि वो भी बाकी चैनलों की भेड़चाल में शआमिल हैं और इसलिए सच को लेकर स्पेशल रिपोर्ट बना रहे हैं लेकिन लगातार टेलीविजन देखनेवाले लोग आसानी से समझ सकते हैं कि सच को लेकर आधे घंटे की स्टोरी का दिखाया जाना इतना जरुरी क्यों हो गया है? रवीश सच का सामना शो के बहाने आदत से ज्यादा फैशन के तौर पर सच की चर्चा किए जाने की स्थिति को अपने से अलग करते हैं और शो के बारे में बिना कुछ कहे,उधार में बिना कोई फुटेज लिए पंजाब के गुरुदासपुर की ओर रुख करते हैं। गुरुदासपुर का वही स्कूल-कॉलेज जिस पर रवीश कुमार ने पहले भी एक स्पेशल स्टोरी की है। जिसकी अपनी कोई बिल्डिंग नहीं है,जहां लड़कियां पढ़ते हुए अपने से नीचे क्लासवाली लड़कियों को पढ़ाती भी है। अबकी बार रवीश ने सच के प्रयोग को दिखाने के लिए इस स्कूल को दोबारा चुना। एक लड़की से रवीश का सवाल है- तुम्हें शर्म नहीं आती कि इतने सारे लोगों के बीच अपनी गलती(परीक्षा में चोरी) को मान रही हो। लड़की का जबाब है- जब गलती करने पर शर्म नहीं आयी तो फिर अब मानने में क्या शर्म? धारदार अंदाज में बोलते हुए एक तरह से वादा भी करती है कि अबकी वो इमानदारी से फर्स्ट क्लास लाएगी। इस प्रोग्रा में एक-दूसरे की गलती को,झूठ को पकड़ने और सुधारे के तरीके को व्यवस्थित तरीके से दिखाया गया। इस स्कूल में ईमानदारी इस हद तक है कि चोरी पकड़े जाने पर 21,000 रुपये का इनाम है लेकिन कभी किसी को ये इनाम मिला नहीं।
अब देखिए तो कार्यक्रम सच का सामना का अर्थ सिर्फ स्त्री-पुरुष के बीच के रिश्तों और उलझनों से भले ले रहा हो,शुरुआती दौर में न्यूज चैनलों ने सच का मतलब विवादों को पैदा करना समझा हो लेकिन कार्यक्रम की पॉपुलरिटी ने कोने-कोने में सच के प्रयोग को खोजने की जिम्मेवारी न्यूज के लिए जरुर बढ़ा दी है। ठीक उसी तरह जैसे बालिका वधू,लाडो और उतरन को देखते हुए सामाजिक कुरीतियों पर थोक के भाव में मुद्दे दिखाए जाने लगे। अब देखना ये होगा कि ये सच,बस एक मुहावरा बनकर रह जाता है,भावुकता और अतिरेक में खो जाता है या फिर इस शो के बहाने सार्वजिनक स्तर के सच खुलकर सामने आते हैं?
मुझे केवल एनडीटीवी का अंदाज पसंद आया। स्पेशल स्टोरी प्रायोजित नहीं लगी।
ReplyDeleteये सच खोजने वाली मशीनें
ReplyDeleteघर घर की कहानी बन गईं
तो क्या होगा
पर लगता है
चैनलों के बाद इनका बसेरा
हर घर घर पर घर्र घर्र करेगा।
सारा खेल बाज़ार का है ..खिलाने वाले का भी ओर खिलाडी का भी ......सबके अपने फायदे है .जहाँ फायदे है वहां नुक्सान का खतरा तो उठाना पड़ेगा ही.......कयास लगाने वाले लगाते रहे ..भारतीय दर्शक वर्ग आगे इसे कैसे लगा ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा .पर टी वी पर निजी संबंधो को सार्वजनिक करने की बहस अगर होती है तो पूर्व में किरण बेदी का प्रोग्राम ..भी मानवीय संवेदनाओं का एक व्यापारीकरण है भले ही आप उसे समाज सेवा का लिबास दे .खुद एन डी टी वी का राखी सावंत का स्वंयवर भी बाजारीकरण का एक घटिया उदारहण है...जिसका जिक्र उनकी न्यूज़ में होता है ....इसलिए कोई दूध का धुला अब नहीं रहा है.....
ReplyDeleteपर मै मानता हूँ इससे टी वी पर एक बहस तो छिदनी चाहिए की अश्लील क्या है ?समाचार भी किसी खबर को कैसे ओर किस रूप में दिखाए ?ओर किस ओर बलात्कार की खबरों को कितनी बार ?किस परिपेक्ष्य में ?लोगोके सामने रखे ....यानी इस बहाने उस रेगुलेटरी कमिटी की जिक्र हो जाए तो कही पीछे चला गया है...जाहिर है बच्चे उसे भी देखते है ..
जहाँ तक सच का सवाल है ...सबका अपना अपना सच होता है ....कई बार एक समय का सच ...अगले कुछ सालो में बदल जाता है...
सबका अपना अपना सच।
ReplyDeletebahut khub vineet bhai....hum yhi se tv dekh liya karenge...
ReplyDelete