Thursday 26 April 2012

"मंडी में मीडिया" बाजार में उपलब्ध

मीडिया भ्रष्टाचार और धत्तकर्म पर लिखी किताब "मंडी में मीडिया" अब बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध है. किताब को लेकर अब तक जितनी तरह की अटकलें लगायी जा रही थी, उस पर विराम चिन्ह लग गया है. आप इसे बहुत ही सहजता से खरीद सकते हैं. फ्लिपकार्ट के जरिए मेरे जिन दोस्तों ने आज से दस-पन्द्रह दिन पहले किताब की बुकिंग करायी है, दो-तीन दिन के भीतर ये किताब उनके हाथ में होगी.

किताब के बारे में अभी कुछ कहना सही नहीं होगा. आपके हाथ में जाने के बाद इसे लेकर आपकी अपनी खुद की प्रतिक्रिया होगी जो कि मेरे लिए ज्यादा मायने रखते हैं. हां इतना जरुर है कि फेसबुक, ईमेल और फोन के जरिए जो सवाल आपने हमसे किए हैं, उस संबंध में दो-तीन बातें स्पष्ट करना जरुरी है.


 पहली बात कि ये किताब मेरे किसी भी तरह के अकादमिक काम मसलन एम.फिल् या पीएच.डी रिसर्च का हिस्सा नहीं है. न ही पिछले कुछ सालों से समय-समय पर मीडिया के अलग-अलग मसलों पर लेख लिखे हैं उनका संकलन है. ये स्वतंत्र रुप से लिखी गई किताब है. इस थीम पर कि जो मीडिया अपने को लोकतंत्र का चौथा खंभा होने का दावा करता है दरअसल उसका चरित्र कैसा है ? दूसरी तरफ एक ऑडिएंस की हैसियत से मीडिया को लेकर हमारी जो उम्मीदें हैं, हमारे जो सपने है, मीडिया उन सबके बीच कैसे अपने धंधे का विस्तार करता है. हमने इस किताब का नाम मीडिया बिजनेस या अर्थशास्त्र इसलिए भी नहीं दिया कि ये साफ-सुथरे ढंग से बिजनेस भी नहीं करता. सच पूछिए तो जितना महान और सरोकार से जुड़े काम करने का दावा करता है, उसका मूल चरित्र उतना ही गंदला है.


 आमतौर पर मीडिया पर जो भी किताबें खासकर हिन्दी में लिखी जाती है,उसमें मीडिया के इस चरित्र की धुंआधार चर्चा तो जरुर होती है लेकिन जैसे ही मामला पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग का आता है, उसे नजरअंदाज करते हुए एक तरह से क्लीन चिट दे दिया जाता है. इस किताब में पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग यानी दूरदर्शन, आकाशवाणी और एफ एम रेडियों पर भी विस्तार से चर्चा की गई है.


राडिया मीडिया प्रकरण पर मीडिया ने जिस चतुराई से अन्ना आंदोलन का पर्दा डाला, उसे समझने में मुझे उम्मीद है कि ये किताब मदद करेगी. राडिया प्रकरण को मीडिया पाठ्यक्रम में बाकायदा एक केस स्टडी के तौर पर शामिल किया जाना चाहिए. सेवंती नैनन ने अपने कॉलम "मीडिया मैटर्स" में लिखा भी था कि राडिया से पत्रकारों की हुई बातचीत पीआर कोर्स करनेवालों के लिए पाठ सामग्री है लेकिन मेरा ख्याल है कि इसे पत्रकारिता कर के छात्रों लिए समान रुप से उपलब्ध कराया जाना चाहिए,उस पर बात होनी चाहिए. इस किताब में इस पर एक स्वतंत्र अध्याय है.


मीडिया में मौके-बेमौके सुधार की पंचायत लगती है. इनडस्ट्री के कुछ दिग्गज चेहरे गर्दन की नस फुलाकर दावा करते हैं कि मीडिया में पहले से तेजी से सुधार हो रहा है. लेकिन उनका ये दावा झोला छाप दवाईयों से कैंसर की बीमारी खत्म होने के दावे से कम हास्यास्पद नहीं है. बीइए और एनबीए जैसी संस्थाएं जो अनिवार्यतः चैनलों के पक्ष में काम करते हैं, वो कैसे एक राजनीतिक पार्टी की तरह काम करते हैं, उम्मीद है कि इस किताब से गुजरते हुए आप बेहतर ढंग से समझ सकेंगे. बहुत सपाट शब्दों में कहा जाए तो इन संस्थानों की नैतिकता इस बात पर टिकी है कि ऐसा कुछ भी न किया जाए जिससे कि चैनल की बैलेंस शीट खराब हो, उसकी सेहत पर बुरा असर पड़े.


इन सब तमाशे और मीडिया सर्कस के बीच जस्टिस काटजू का अवतरण आज का अर्जुन की तरह हुआ और एकबारगी ऐसा लगा कि वो अकेले ऐसे शख्स हैं जो मीडिया के इस धत्तकर्म और चीटफंट के खेल को तहस-नहस करेंगे लेकिन चूंकि मीडिया अपने बहरुपिए चरित्र निभाने में सिद्धस्थ है, ऐसे में जस्टिस काटजू भी टाइम्स नाउ के बहाने उस चमत्कार में उलझकर रह जाते हैं.


चैनल के कुछ चमकदार चेहरे जब प्रेस का पट्टा लगाकर कहते हैं कि हम मीडिया के जरिए समाज में हक की लड़ाई लड़ रहे हैं और हाशिए के समाज के लिए संघर्षरत हैं, उनके इस मुंबईया सिनेमा के डायलॉग को नेटवर्क 18 जैसा मीडिया बेंचर नुक्कड नाटक के लिए रिहर्सल मात्र का हिस्सा बनाकर छोड़ देता है, इसे आप उसकी रिलायंस इन्डस्ट्रीज से हुए जुगलबंदी से गुजरते हुए समझ सकेंगे. क्रॉस मीडिया ऑनरशिप को समझने के लिए इस पर लिखा स्वतंत्र अध्याय एक हद तक मदद करेगा.


इन सब बातों और विवादों के बीच ये कहना जरुरी है जिसे कि मैंने किताब की भूमिका में लिखी थी लेकिन फिसलकर मेरी लैप्पी में ही रह गयी- ये मेरी किताब है, ऐसा दावा करना सही नहीं होगा । ये दरअसल मेरे जैसे उन हजारों मीडिया छात्रों की सामूहिक अभिव्यक्ति है जो फ्लैट और गाड़ीधारी मीडियाकर्मी बनने से पहले ही इस मीडिया के लिए मिसफिट हो जाते हैं । ये उन हजारों पत्रकारों की कसक है जो सचमुच कुछ अलग करना चाहते हैं, फोन पर लंबी-लंबी बातचीत में इस मीडिया मंडी की हकीकत और फसाने सुनाया करते हैं । मेरे पास घंटों टीवी देखने, रेडियो सुनने के समय थे, जेआरएफ नाम का एक पेड़ था जिस पर पांच साल के लिए मेरी जरुरत से ज्यादा पैसे उगते थे और टाइपिंग स्पीड थी...तो बस एक किताब लिख डाली ।


कहां से मिलेगी "मंडी में मीडिया" ?-


1. वाणी प्रकाशन,4695,21-ए, दरियागंज, नई दिल्ली-110002, संपर्क-01123273167
2. फ्लिपकार्ट

3. बुक सेंटर, आर्टस फैकल्टी, दिल्ली विश्वविद्यालय, नार्थ कैंपस
4. मीडियाखबर.डॉट.कॉम, संपर्क- pushkar19@gmail.com( मीडियाखबर के जरिए किताब खरीदने पर विशेष छूट)

5. विनीत कुमार- 9811853307 ( मीडिया के जो छात्र और साथी किताब पढ़ना भर चाहते हैं,फिर लौटा देंगे )


नोट- अभी किताब की सिर्फ हार्डकॉपी उपलब्ध है, पेपरबैक अगले सप्ताह तक..

3 comments:

  1. bhaiya kab se pre order kar chuke hai pr abhi tak koe reply nahi aaya hai flipcart se...

    My order No (ID: OD20331180315) has been confirmed and is being processed.
    ab kya kare ye bataeye..

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  2. किताब देख कर ख़ुशी हुई , मित्र

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  3. थैंक्स डियर, अरविंद मैंने एफबी पर डिटेल दे दिया है दोस्त..

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