Sunday 22 February 2009

टेलीविजन की रियलिटी तमाशा है- मार्क टली


पंकज पचौरी का ये सवाल अभी पूरा ही होता कि टेलीविजन रियलिटी और बनावटी, देश और दुनिया के जाने-माने पत्रकार मार्क टली ने जबाब दिया-टेलीविजन की रियलिटी तमाशा है। रियलिटी शो में जो कुछ भी दिखाया जाता है उसमें कुछ भी रियल नहीं होता, सिर्फ तमाशा होता है। मार्क टली के इस विचार से नलिनी सिंह भी सहमत नजर आई और साफ कहा कि हल्की-फुल्की चीजें दिखाकर टेलीविजन किसी हद तक हमारा भला नहीं कर रहा। पंकज पचौरी की इस टिप्पणी पर कि चैनलों का हमेशा ये दावा होता है कि वो वही दिखा रहे हैं, जिसे कि देश की ऑडिएंस देखना चाहती है। इस टिप्पणी के साथ नलिनी सिंह ने एक यूथ की बात को शामिल करते हुए कहा कि- सुनिए, ये क्या कह रहे हैं। ये कह रहे हैं कि रोडिज जैसे शो में लोग आपस में खूब गालियां देते हैं तो क्या आशुतोष और राहुल महाजन चाहेंगे कि उनके परिवार के ये लड़के भी गालियां दें, क्या ये उसके बेहतरी के लिए होगा। नलिनी सिंह ने कहा कि टेलीविजन का ये दावा झूठा है कि लोग देखना चाहते हैं इसलिए वो बिग बॉस औऱ दुनिया भर के रियलिटी शो दिखा रहे हैं। सच्चाई आपके सामने है कि युवा भी इस तरह के कार्यक्रम नहीं देखना चाहता है, कुछ और देखना चाहता है।
बिग बॉस 1 औऱ शिल्पा को गाली दिए जाने की वजह से चर्चा में बनी रही और अब सिलेब्रेटी की हैसियत में शुमार हो चुकी जेड गुडी इन दिनों एक बार फिर से चर्चा में है। गुडी कैंसर से पीडित है औऱ बहुत ही कम दिनों की मेहमान है लेकिन इससे भी दिलचस्प बात है कि उसकी शादी लाइव दिखायी गयी। अब उसकी मौत को भी लाइव दिखाने की बात जोरों पर है। इन सारी बातों को समेटते हुए एनडीटीवी इंडिया को लगा कि टेलीविजन, रियलिटी शो और बनावटी का मुद्दा फिर से प्रासंगिक हो सकता है, इसलिए उसने आज हमलोग में इस पर चर्चा शुरु किया। चर्चा में भाग लेनेवालों में मार्क टली के अलावे नलिनी सिंह, संजय निरुपम और पीएन बासंती भी रहे। मुंबई से राहुल महाजन औऱ बिग बॉस विजेता आशुतोष लाइव चैट पर थे।
चर्चा मे एक बार फिर से टेलीविजन को कोसने की कवायद शुरु हुई। मार्क टली ने तो आते ही इसे तमाशा करार दिया। नलिनी सिंह ने इसे व्यापक संदर्भ में उठाते हुए इसे हल्की-फुल्की फूहड़ चीजें परोसने का माध्यम बताया। निशाने पर मनोरंजन चैनल ज्यादा रहे। संजय निरुपम बिग बॉस का स्वाद चख चुके हैं और साथ में नेता भी हैं इसलिए उन्होंने तटस्थ होने का भरपूर प्रयास किया औऱ बताया कि एक हद रियलिटी शो में कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन टेलीविजन को अधिकांश लोगों द्वारा कोसते रहने के वाबजूद भी पूरी बातचीत दो धड़ों में बंट गयी।
पंकज पचौरी ने आशुतोष से सवाल किया- आप बताइए, आपके हिसाब से रियलिटी शो का आपकी जिंदगी में कितना महत्व है। आशुतोष ने अपनी बेबाकी को बरकरार रखते हुए कहा- आज आपने मुझे एनडीटी के स्टूडियों में बुलाया है। अगर मैं बिग बॉस नहीं जीता होता तो आप मुझे पूछते भी नहीं कि आशुतोष कौन है। इतना बोलने के साथ ही नीचे फ्लैश होता है, दुनिया भर के रियलिटी शो भारत में लोकप्रिय। यही सवाल राहुल महाजन से पूछा गया औऱ साथ में यह भी जोड़ दिया गया कि- पैसे कमाने के लिए आप बिग बॉस में आए। राहुल महाजन का जबाब था- आप रियलिटी शो को लेकर बार-बार पैसे की बात कर रहे हैं, आप भी पैसा कमाना चाहते हैं, मेरे कुछ पत्रकार दोस्त हैं, बिग बॉस के लिए मैं आपका नाम रिक्मेंड कर दूंगा। मैं पैसे के लिए नहीं, पैसे तो कई दूसरे बिजनेस से भी कमाए जा सकते हैं। मैं तो वहां इसलिए गया था कि हमें चौबीस घंटे लोग देखेगें, हमें समझेंगे।
राहुल महाजन,आशुतोष और यहां तक कि संजय निरुपम किसी भी हद तक ये मानने के लिए तैयार ही नहीं नजर आए कि रियलिटी शो से कोई बहुत नुकसान है जबकि दर्शक सहित बाकी के स्पीकरों ने इसेम समाज को दिशाहीन और सिर्फ पैसा कमाने का माध्यम बनाया। एक ऑडिएंस ने तो रियलिटी शो की बॉल से तो खुद एनडीटीवी को हिट दे मारी। उनका कहना था कि- बिग फाइट, बी द पीपुल, हमलोग, मुकाबला जैसे जितने भी कार्यक्रम आते हैं इससे चैनल जितना बुस्ट हुआ है उतना समाज को कुछ भी नहीं मिला है। आप रियलिटी की बात करते हैं, सबसे ज्यादा किसान मरे और मर रहे हैं, उस पर कोई क्यों नहीं बात करता। आशुतोष ने भी टिप्पणी कि आप किसानों को स्टूडियो में लाकर क्यों नहीं बिठाते, उनसे क्यों नहीं पूछते कि तुम्हारी ऐसी हालत क्यों हो गयी। राहुल महाजन का एक तर्क ये भी रहा कि राजू श्रीवास्तव को आतंकवादियों की ओर से धमकियां मिल रही है, वो आदमी लोगों को हंसा-हंसाकर समाज को कुछ देने का काम कर रहा है, आप उसे भी तो देखिए।

विमर्श का एक मुद्दा ये भी रहा कि आज किसी को मौत को लाइव दिखाने की बात हो रही है, कल को कोई बेबकैम पर सुसाइड करते हुए अपने को दिखाएगा, कल किसी की स्ट्रीप्टीज दिखायी जाएगी। ये सिलसिला कहां तक आगे जाएगा। अब इसमें कानून,संवैधानिक प्रावधान और नैतिकता की बात होने लगी। मार्क टली का मानना रहा कि जैसे ही आप कानून की बात करते हैं, सेंसरशिप की बात आ जाती है और यही गड़बड़ी पैदा करता है। संजय निरुपम ने साफ कहा कि मैं किसी भी तरह की सेंसरशिप के खिलाफ हूं। ये हमारे, प्रोड्यूसरों और चैनल के बाकी लोगों की जिम्मेवारी है कि हम नैतिक तरीके से उस कार्यक्रम को दिखाएं जो कि समाज के हित में है। पंकज पचौरी की इस अपील के साथ ही हम चाहते हैं कि आप अच्छा टेलीविजन, अच्छे चैनल देखें ये कार्यक्रम समाप्त हो गया.
टेलीविजन को लेकर आमतौर पर जब भी और जहां भी चर्चाएं होती है, हम उसे लेकर या तो बहुत ही नैतिक हो जाते हैं या फिर उसके समर्थन में आशुतोष की तरह बेबाकी से अपनी बात रखते हैं। इसे हम या तो समाजशास्त्र का विषय बनाने पर अड़ जाते हैं या फिर बाजारवाद का पहरुआ साबित करके कोड़े बरसाने लग जाते हैं। इस मनोविज्ञान को समझने में हम कम ही दिलचस्पी ले पाते हैं कि एक ही ऑडिएंस को अलग-अलग मौके पर अलग-अलग कार्यक्रम क्यों पसंद है। 25 करोड़ की बेरोजगार ऑडिएंस क्यों एक इंडियन ऑयडल बनने के पीछे अपना जान देने में लगी हुई है। आपको नहीं लगता कि सामाजिक विकास के बहुत सारे काम ठप्प हो जाने की स्थिति में टेलीविजन से हम इस बात की उम्मीद करने लग गए हैं कि हमारे संस्कार, वैचारिकी और हालात को एक अकेला टेलीविजन दुरुस्त कर देगा।

2 comments:

  1. हम सब लोग 'तात्‍कालिक चिन्‍तातुर लोग' हो गए हैं। परेशान सब हैं और निजात भी सब पाना चाहते हैं किन्‍तु चाहते हैं कि कोई और आकर निजात दिलाए। शुरुआत करने की बात छोड दीजिए, कोई ऐसी शुरुआत कर भी देता है तो उसके साथ चलने को तैयार नहीं होते।
    हम सब 'वाणी-वीर' और 'कर्महीन' बन गए हैं। ऐसे में यह सब ऐसे ही चलता रहेगा-टीवी के रियलिटी शो भी, उन पर बहस भी और ऐसी बहसों पर ऐसा ब्‍लाग विमर्श भी।
    आशा एक ही है। चूंकि हम एक 'पारम्‍पिरक समाज' हैं, इसलिए जब खतरा हमें लीलने लगेगा तब हम अवश्‍य सक्रिय और सचेष्‍ट हो जांगे। सच मानिएगा।

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  2. लोग रियलिटी देखना इसलिए पसंद करते हैं कि ड्रामा देख-देख कर बोर हो गए हैं। पारिवारिक ड्रामों में कृत्रिमता इतनी अधिक होती है कि कहीं से भी दिल को छू नहीं पाते, न तो कथानक के स्‍तर पर, और न ही अभिनय, संवाद के स्‍तर पर। हर चैनल पर एक जैसे परिवार और उनकी कलह (उनके अवास्‍तविक मुद्दे) देखकर इरीटेट हो गए हैं। चलो रियलिटी के बहाने कुछ चेंज तो मिलेगा। टैलेंट हंट के लिए साक्षात्‍कार के दौरान असली एक्‍शन, रिएक्‍शन देखने को मिलता है। कम से कम साक्षात्‍कार में आए नए लड़के, लड़कियों की खुशी और दुख तो असली होते हैं।

    यही हाल बिग बॉस का है। सेलीब्रिटी के लड़ाई-झगड़ों और गुटबंदियों को समूचे और असली रूप से देखने में दिलचस्‍पी होती है। उनकी मन: स्थिति का विश्‍लेषण करते हैं और उनकी भावनाओं/ सुख-दुख से स्‍वयं को रिलेट करते हैं। मुद्दा यही कि दिल को वही छुएगा जो असली या असलियत के करीब होगा। इस देखने और दिखाने की प्रक्रिया में बाज़ार भी अपना फ़ायदा उठा लेता है। आम आदमी टीवी तो देखेगा ही। अब टीवी उसकी आदत बन चुकी है। जो भी सामग्री उपलब्‍ध है, उन्‍हीं में से किसी को चुनकर अपना टाइम पास करेगा। मेरे विचार से टीवी से सरोकार सिर्फ मनोरंजन के लिए ही होता है, बशर्ते जब तक कोई विशेष घटना, जैसे 26/11 न हो।

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