Tuesday 24 February 2009

क्या देखें- सास बहू और साजिश या सास बहू और बेटियां


नया ज्ञानोदय(मार्च) के लिए लेख लिखने के क्रम में मुझे एक बार फिर न्यूज चैनलों के उन पुराने फुटेज औऱ खबरों को खंगालना पड़ गया जिसमें सीरियलों की नई खेप को सामाजिक विकास का माध्यम बतालाया गया था। स्टार न्यूज, इ 24 और आजतक ने सीरियलों की इस नयी खेप पर बहुत सारी स्टोरी की है। सबमें ये बताने की कोशिश की है कि अब टीवी सीरियल के जरिए सामाजिक विकास का काम किया जा रहा है। हेडलाइन्स टुडे 14 नवम्बर बाल दिवस के दिन बालिका वधू का असर देखते हुए राजस्थान के उन इलाकों की कवरेज में जुटा रहा, जहां सरकारी प्रतिबंध के वाबजूद भी बाल-विवाह जारी है। कुल मिलाकर चैनलों द्वारा इस तरह के महौल बनाए गए कि एकबारगी हम भी सोचने लग गए कि क्या वाकई टीवी सीरियलों के जरिए सामाजिक विकास संभव है। जागरुकता को एक हद तक शामिल किया जा सकता है लेकिन ये भी है कि जहां बाल-विवाह नहीं होते, वहां के लोगों के बीच इसका सेंस है। वो भी इसे देख रहे हैं तो क्या इसमें सामाजिक विकास का मामला जानकर या फिर इसकी कोई और भी वजह है। क्या ये सिर्फ सीरियलों के पैटर्न बदलने का मामला है। सास-बहू से आजीज ऑडिएंस को कुछ राहत और नया देने के लिए सीरियलों का मिजाज बदला गया है। इस पूरी वहस को मैंने अपने लेख टीवी सीरियलों में बदलते जज़्बात के रंग में समेटने की कोशिश की है। कोशिश रहेगी कि उसे भी टीवी प्लस पर चढ़ा दूं। फिलहाल,
सास बहू औऱ साजिश स्टार प्लस के कमाउ कार्यक्रमों में से एक है। पिछले चार महीने पहले ही उसने अपने तीन साल पूरे किए और आदर्श बहू तुलसी औऱ छोटी बहू आनंदी से एनिवर्सरी के केट कटवाए। इस कार्यक्रम की सफलता को देखते हुए आजतक ने भी टेलीविजन खासकर सोप ओपेरा से जुड़ी खबरों को फोकस करते हुए 2007 एक कार्यक्रम की शुरुआत की थी- धन्नो बोले तो। कुछ ही महीने बाद प्रसारण के विवाद को लेकर इसे बंद करना पड़ा। उसके बाद आजतक को पैकेज के भरोसे ही टेलीविजन की खबरों को चलाना पड़ा, कोई अलग से कार्यक्रम नहीं बनाए।
अब इधर कुछ दिनों से देख रहा हूं कि उसने एक नया कार्यक्रम शुरु किया है- सास,बहू औऱ बेटियां। कार्यक्रम सास, बहू औऱ साजिश की ही तर्ज पर है लेकिन साजिश शब्द को हटा दिया गया है। ये सिर्फ अलग दिखने भर के लिए नहीं है। इस एक शब्द से ही आप टीवी सीरियल के एक नए दौर की शुरुआत के संकेत समझ सकते हैं। सास, बहू और साजिश से ये पहले ही साफ हो जाता है कि इसमें सास औऱ बहुओं के बीच सीरियलों में जो कुछ भी चलता रहता है, उसे दिखाया जाएगा। लेकिन आजतक ने साजिश की जगह बेटियां रखा है जो सीरियल के बदलते मिजाज को साफ करता है।
नए सीरियलों की जो खेप आयी है वो पुराने सीरियलों की टीआरपी की मार खाते हुए देखकर आयी है। उसे पता है कि जिस के फैक्टर के सीरियलों को एक जमाने में देश की ऑडिएंस ने आंखों पर बिठाया, अब कैसे उससे छिटकती जा रही है। इसकी बड़ी वजह एक ये भी रही कि इसमें सिर्फ कलह दिखाया जाता रहा। इसलिए अब के अधिकांश सीरियलों ने चाहे वो बालिका वधू, उतरन, आठवां वचन, छोटी बहू, राधा की बेटियां कुछ कर दिखाएगी हो या फिर हम चार लड़कियां ससुराल से लेकर मायके तक का सफर हो सबों ने सास को रिप्लेस करते हुए सबों में मां को स्टैब्लिश कर दिया। लम्बे अर्से से जिस टीवी सीरियल में स्त्री छवि सास के तौर पर स्टैब्लिश की जाती रही, अब उसकी जगह मां को स्टैब्लिश करने की कोशिशें जारी है। इसे आप मां प्रधान सीरियलों की भी दौर कह सकते हैं। इसमें इमोशनल टच ज्यादा है तो जाहिर है टीआरपी के लिहाज से भी ये दुधार साबित हो रहे हैं। इसलिए आजतक की बेटियां शब्द के प्रयोग में सीरियल के एक दौर के खत्म हो जाने और नए दौर के शुरु होने के संकेत मिलते हैं।
लेकिन कंटेट के स्तर पर बहुत फर्क नहीं है। दोनों में एक ही बात है। दोनों चैनलों ने शिवरात्रि के दिन बेटी और बेटी सरीखी बहुओं को जुटाया और सीरियल के शॉट्स से अलग अपने-अपने चैनल के माइक थमाकर शिव के आगे दूध औऱ जल चढ़वाया, उनसे बाइट मांगी और हमारे बीच बांटा। तब आप कह सकते हैं कि सिर्फ नाम बदला है, अंदर का माल नहीं बदला है। अब आप हमें ये मत कहने लग जाइए कि आजतक से इससे ज्यादा की उम्मीद भी नहीं कर सकते।

2 comments:

  1. मुखौटे बदल लिए हैं
    इससे टीआरपी बढ़ती है
    बढ़ने की संभावना बनती है
    साजिश जो टीआरपी बढ़ाने की है
    साजिश जो चैनलों को दुधारू बनाने की है
    साजिश संस्‍कार भगाने की या भुलाने की
    साजिश ही साजिश है सब जगह
    सुनते हैं ऑस्‍कर पुरस्‍कार में भी साजिश है
    अगर यह साजिश है तो भी खालिस है।

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