Saturday 6 March 2010

रिश्तों की नाजुक डोर को टच करता टेलीविजन


राहुल महाजन से मेरा क्या लेना-देना है भला? ये डिम्पी गांगुली कौन है,आज से तीन सप्ताह पहले मुझे कुछ भी पता नहीं था। लेकिन आज राहुल महाजन ने जैसे ही उसे ये कहते हुए अंगुठी पहनायी diamand is forever सो love is forever,मेरी आंखों से आंसू छलछला गए। फेसबुक पर मैंने ये लाईनें लिखते हुए साथ में जोड़ा-कुछ मीठा खाने का मन हो रहा है।

ये बात भला किसे पता नहीं है कि टेलीविजन पर की एक-एक अदाएं,एक-एक अंदाज,एक-एक धागा प्रायोजित है। चेहरे पर उठने वाले भाव,हंसी-ठहाकों,दर्द-आंसू,शरारत और शोक के रेट पहले से तय है। राहुल महाजन बिना प्रायोजित होकर प्यार का इजहार नहीं कर सकते। जिंदगी का शायद सबसे खूबसूरत लम्हें को भी वो बाजार से गुजरे बिना महसूस नहीं कर सकते। अपनी होनेवाली पत्नी के लिए प्यार हमेशा के लिए के पहले हीरा है सदा के लिए(डीबीयर्स)का विज्ञापन करना पड़ जाता है। लेकिन ये सब जानते-समझते हुए भी हम टेलीविजन देखते हुए हमेशा उतने अधिक कॉन्शस नहीं रह जाते कि हमारी फीलिंग्स(जिसे कि वर्डसवर्थ ने स्पॉन्टेनीयस ओवरफ्लो ऑफ इमोशन कहा है)तर्कों में जाकर जकड़ जाए।

हम बाजार की रणनीति,मुनाफे की राजनीति और टीआरपी की तिकड़मों की सोच के साथ कैद होकर ही टेलीविजन देखें,ऐसा अक्सर नहीं हो पाता। अब जो लोग इस नीयत से ही टेलीविजन देखने बैठते हैं कि इसे दस-पन्द्रह मिनट देखना है और फिर दमभर कोसना है,टेलीविजन को लेकर सारी धारणाएं अदना एक रियलिटी शो के एपीसोड,सीरियल या फिर एक बुलेटिन देखकर बनानी है,फिलहाल मैं उनकी बात नहीं कर रहा। लेकिन मेरी अपनी समझ है कि टेलीविजन से सबसे पहले हम अभिरुचि और इमोशन के स्तर पर जुड़ते हैं। आलोचना और उसमें दुनियाभर की थीअरि अप्लाय करने की स्थिति बाद में आती है।

दि टेलीविजन हैंडबुक(राउट्लेज,2005)में मीडिया लिटरेसी पर बात करते हुए जॉन्थन बिगनेल ने कहा भी है कि हम मीडिया के स्तर पर इसलिए अपने को साक्षर बनाना/बताना चाहते हैं क्योंकि हम ये साबित करना चाहते हैं कि टेलीविजन जो कुछ भी हमें दिखा रहा है,उसका हम पर उसी रुप में असर नहीं हो रहा है जिस रुप में वो असर पैदा करना चाहता है। नहीं तो इसलिए कई बार होता है कि जो कई कार्यक्रम सरोकार से जुड़े नहीं होते हैं,जिसका कि सामाजिक स्तर पर बहुत ही बुरा असर होता है,अभिरुचि और इमोशन के स्तर पर हम उससे जुड़ जाते हैं। बाद में हम इसकी जमकर आलोचना करते हैं। हमारी आलोचना के स्वर तो पब्लिक डोमेन में सामने उभरकर आ जाते हैं लेकिन हमारी अभिरुचि का सही आकलन नहीं होने पाता। हमारे इसी दोहरे चरित्र को लेकर टेलीविजन के लोगों को एक मुहावरा मिल जाता है कि लोग जो देखते हैं उसे ही तो हम दिखाते हैं। सच्चाई ये है कि तमाम तरह की विसंगतियों के वाबजूद टेलीविजन पर मौजूद संबंधों,इमोशन और फीलिग्स के मौके से हम जुड़ते ही हैं। संबंधों पर आधारित सीरियल्स और अब रिश्तों पर आधारित रियलिटी शो हमारी इसी नाजुक रेशे को पकड़ने की कोशिश करते हैं। शायद यही कारण है कि समाज में बौद्धिकता का यदि विस्तार हुआ है तो टेलीविजन प इमोशन्स और रिलेशनशिप से जुड़े कार्यक्रमों की आंधी-सी बही जा रही है। यकीन मानिए टेलीविजन से जिस दिन इमोशन और रिलेशनशिप गायब होने लग जाएंगे,इसकी दूकान बैठ जाएगी। स्थिति ये है कि अब हम बिना रिश्ते और बिना संवेदनशील हुए घर के भीतर तो जी लेंगे लेकिन टेलीविजन पर यही स्थिति हम बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे। टेलीविजन के बने रहने के लिए रिश्तों की इस नाजुक डोर को टच करते रहना जरुरी है।

एनडीटीवी इमैजिन पर राहुल के स्वयंवर की तैयारी जोर-शोर से चल रही थी। अगर आप टेलीविजन सैद्धांतिकियों को थोड़ी देर के लिए कपार पर चढ़कर न बोलने देते हों तो आपने भीतर कई तरह के भाव डूबते-उतरते हैं। सोच का एक सिरा सीधे संस्क़ति से टकराता है और मेरी तरह की समझवाला इंसान इसे टेलीविजन का कन्सट्रक्टिव एप्रोच मानता है। हां आप तर्क दे सकते हैं कि तीन लड़कियों में बाकी की दो लड़कियों पर जो बीत रही होगी,उसका आपको अंदाजा है?..तो याद कीजिए बिहार,यूपी या फिर देश के किसी ऐसे हिस्से की उन घटनाओं को जहां सिमटी,सकुचायी लड़की चार-पांच पुरुषों के आगे आती है,धीरे चाय-पानी बढ़ाती है. मर्दवादी सवालों का जवाब देती है और अंत में खारिज कर दी जाती है। फिर दूसरे रिश्ते के लिए इस क्रम को दोहराती है। और हमेशा पहले से ज्यादा छीजती और कुंठित होती चली जाती है। टेलीविजन खारिज की गयी इन लड़कियों में सिलेब्रेटी एम्बीएंस पैदा करता है। दूसरी तरह राहुल महाजन के जीवन की जो वास्तविक छवि रही है,मेरी अपनी समझ है कि अगर उसे टेलीविजन का सहारा नहीं मिला होता तो न तो चैनल और न ही बाजार उन पर लाखों रुपये का दाव लगाकर स्वयंवर रचाता। टेलीविजन ने राहुल की डिस्गार्ड इमेज को बिल्डअप किया है और ये लगातार रिश्तों की डोर को छुते हुए,सहेजते हुए।

लेकिन ये सब सोचते हुए जब टाइम्स नाउ की तरफ बढञता हूं तो वहां अलग ही मार-काट मची हुई है। the way we live: reality television नाम के इस कार्यक्रम में एक्सपर्ट लगभग दहाड़ने के अंदाज में अपनी बात रखती है. जिस महिला को बच्चा पालना डिस्टर्विंग लगता है,वो दस महीने के बच्चे के साथ खिलवाड़ कर रही है। वो राखी सावंत का रेफरेंस देती है और सारे फुटेज पति,पत्नी और वो के दिखाए जाते हैं। जिस बच्चे की मां ने चैनल को अपना बच्चा लोन पर देती है,उसकी शिकायत की लंबी फेहरिस्त है। टेलीविजन पर इस तरह के रिश्तों का रेशा बुनना उसे खल जाता है। जिसे मां होने का एहसास ही नहीं है वो बच्चे के साथ क्या जस्टिफाय कर पाएगी। आधे घंटे की इस बहस में टेलीविजन और रियलिटी शो में इन रिश्तों का बाहियात और गैरमानवीय करार दिया जाता है। लेकिन निष्कर्ष के तौर पर एंकर का कहना है कि तो कुल मिलाकर बात यही है कि हर बात के दो पहलू हैं,ये आप पर निर्भर करता है कि आप चीजों को कैसे लेते हैं?

रिश्तों की इस नाजुक डोर से आजकल सबसे ज्यादा उलझा हुआ है यूटीवी बिंदास का इमोशनल अत्याचार। आप जिस लड़की के साथ इतने गरीब हो गए कि हग और स्मूच तो बहुत छोटी बात,आप ने वो सब किया जो कि आप अपनी गर्लफ्रैंड के साथ बड़े ही अधिकार से करते हैं। बाद में आपको पता चलता है कि आप अन्डर कैमरा ऑब्जर्वेशन हैं और इसकी सीडी आपकी गर्लफ्रैंड देख रही है। यही हाल एक लड़की के साथ भी हो सकता है? चैनल का दावा है कि वो रिश्तों के बीच का जो खोखलापन है उसे उजागर कर रहे हैं। यानी रिश्तों का स्टिंग ऑपरेशन।

अविका गौड़ के भीतर आनंदी का कैरेक्टर इतना रच-बस गया है कि वो कलर्स पर बिंगो खेलने आने पर भी अविनाश(जगदीसिया)को बिंद के तौर पर ट्रीट करती है। बार-बार राजस्थान की परंपरा का हवाला देती है और उसे ही पहले सब करने को कहती है।

यानी टेलीविजन पर संबंधों और रिश्तों की जबल फग्शनिंग जारी है। एक जहां टेलीविजन कैरेक्टर रीयल लाइफ में भी टेलीविजन के होते जा रहे हैं और दूसरा टेलीविजन पर बने रिश्ते को सामाजिक तौर पर स्वीकार कर लिया जा रहा है। ये रियलिटी शो नहीं है,ये मैरिज ब्यूरो भी नहीं है। इसमें मुनाफे का गेम तो जरुर शामिल है लेकिन ये समाज को डिकन्सट्रक्ट करके नए सिरे से देखने की कोशिशें हैं जिसमें संभव है कि कुछ बनता-बनता भी दिखायी दे रहा है। लेकिन इस बनने में क्या-क्या ध्वस्त हो रहा है इसकी शिनाख्त जारी रहनी चाहिए।

3 comments:

  1. बड़े अपडेट हैं सर. इतना फास्ट ऐसी समीछा और वो भी इतनी जल्दी सोंचा भी नहीं होगा. वैसे रिश्ता और निजता के नाम पर खुद को ताकतवर बनाये रखने की परंपरा हमारे पुरानों तक में मौजूद हैं.हमारे लोगों का चरित्र इसी में खुश होता है तो चैनल को क्या पड़ी है वो मुनाफा कमाने बैठा है. भले समाज और लोग भाड़ में जाएँ ,उनकी बला से.

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  2. सुन्दर लेख। हमारी श्रीमती के आजकल के दो सीरियल में से एक कल निपट लिया। राहुल की शादी तो हो ली। अब देखना है रिश्तों का स्टिंग आपरेशन कब तक चलता है। :)

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  3. bahut badhiya vineetji...wo bhi kya karein vigyapan kiye bina unki rozi roti bhi to nahi chalti

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